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वह माहण दिव्य खेती करे। उस दिव्य कृषि को छोड़े नहीं। इस प्रकार अर्हत् मातंग ऋषि बोले
Such a Brahmin should constantly grow the crop of divinity, said Matanga, the seer.
आता छेत्तं, तवो बीयं, संजमो जुअणंगलं।
झाणं फालो निसित्तो य, संवरो य बीयं दढं।।8।। 8. आत्मा क्षेत्र है। तप बीज है। संयम हल है। ध्यान तीक्ष्ण फाल है और संवर सुदृढ़ एवं स्थिर बीज है।
8. Soul is the field, penances the seed, austerity the plough, meditation the sharp end of the blade and restraint the latent energy of the seed.
अकूडत्तं च कूडेसु, विणए णियमणे ठिते।
तितिक्खा य हलीसा तु, दया गुत्ती य पग्गहा।।9।। ____9. जो मायावियों में छल-प्रपंच रहित है और जो नियमपूर्वक विनम्र भाव से रहता है। सहनशीलता जिसकी हलीसा है, दया और गुप्ति जिसकी लगाम (नाथ) है।
9. One who is innocent amongst the living beings, who is modest, tolerance is whose car and compassion and self-control whose rein (is a true Brahmin).
सम्मत्तं गोत्थणवो, समिती उ समिला तहा।
धितिजोत्तसुसंबद्धा, सव्वण्णुवयणो रया।।10।। 10. सम्यक्त्व रूप गोत्थणव-जुआ है। समिति रूप शमिला—युगकीलक (लकड़ी की कील) है। धैर्य रूप जोत (वह रस्सी जिससे बैल को हल में जोता जाता है) से सुसम्बद्ध और सर्वज्ञवाणी में अनुरक्त है।
10. Equanimity is his yoke (for the bullocks). Imperturbability is his harness rod, patience is the steadfast harness and he is devoted to the gospel of the enlightened.
पंचेव इंदियाणि तु, खन्ता दन्ता य णिज्जिता।
माहणेसु तु जो गोणा, गंभीरं कसते किसिं।।11। 11. क्षान्त और दान्त जिसके बैल हैं। ऐसा माहण पाँचों इन्द्रियों को जीत कर गम्भीर दिव्य कृषि/खेती करता है।
-348 इसिभासियाई सुत्ताई