________________
4. रथ और धनुषधारी माहण / ब्राह्मण नहीं है । शस्त्रधारी भी ब्राह्मण नहीं है। ब्राह्मण मृषा वाणी न बोले और न चौर्यकर्म ही करे ।
4., Warrior and regally attired Brahmins are not true Brahmins. Brahmins should abstain from falsehood and theft.
मेहुणं तु ण गच्छेज्जा, णेव गेहे परिग्गहं । धम्मंगेहिं णिजुत्तेहिं, झाणज्झयणपरायणो ।।5।
5. ब्राह्मण मैथुन / अब्रह्मचर्य का सेवन न करे और परिग्रह को भी स्वीकार न करे। धर्म के विविध अंगों में संलग्न होकर ध्यान और अध्ययन / स्वाध्याय में परायण बने।.
5. A Brahmin should abstain from sexual indulgence nor should he amass wealth. He should practise austerities and such aspects of religious conduct and devote to studies.
सव्विंदिएहिं गुत्तेहिं, सच्चप्पेही स सीलंगेहिं णिउत्तेहिं, सीलप्पेही स
माहणे । माहणे ।।6।।
6. जो समस्त इन्द्रियों पर नियन्त्रण रखता है और सत्यद्रष्टा है वही माहण है। जो शील- ब्रह्मचर्य के विविध अंगों के पालन में सचेष्ट है और शीलप्रेक्षी है वही माह है।
6. One who restrains one's senses and is a seer of truth alone is Brahmin. One who vigilantly observes ethical conduct and continence in their fulness and is morally-oriented alone is Brahmin.
छज्जीवकायहितए,
सव्वसत्तदयावरे। स माहणे त्ति वत्तव्वे, आता जस्स विसुज्झती ॥7॥
7. जो छह जीवनिकाय – पृथ्वी, अप्, तेजस्, वायु, वनस्पति और त्रस का हितकारी / रक्षक है और समस्त प्राणियों पर दया - कारुण्यभाव रखता है तथा जिसकी आत्मा विशुद्ध है उसे ही माहण कहना चाहिए।
7. One who protects earth, water, fire, air, vegetaion and living beings and spontaneously feels sympathy and compassion for every living beings, one whose soul is chaste, alone is Brahmin.
दिव्वं भो किसिं किसेज्जा, णेवप्पिणेज्जा । मातंगे णं अरहता इसिणा
बुइतं ।
26. मातंग अध्ययन 347