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22. दुवीसं गद्दभीयज्झयणं
परिसाडी कम्मे अपरिसाडिणो बुद्धा, तम्हा खलु अपरिसाडिणो बुद्धा गोवलिप्पन्ति रणं पुक्खरपत्तं व वारिणा । दगभालेण अरहता इसिणा बुइतं ।
कर्मों को पृथक् करना चाहिए। कर्मों को पृथक् न करने वाले अबुद्ध / अज्ञानी होते हैं। कर्मों को पृथक् करने वाले प्रबुद्ध कर्मरज से वैसे ही अलिप्त रहते हैं जैसे जल से कमल ।
ऐसा अर्हत् दगभाल/गर्दभालि ऋषि बोले—
Actions (Karmas) should be segregated. Those who fail to do so are ignorant. The wise who succeed in segregating their Karmas are intact of the Karmic smear like a lotus in pond.
Thus spoke Dagbhal, the seer :
पुरिसादीया धम्मा पुरिसपयरा पुरिसजेट्ठा पुरिसकप्पिया पुरिसपज्जोविता पुरिससमन्नागता पुरिसमेव अभिउंजियाणं चिट्ठन्ति । से जहा नामते अरती सिया सरीरंसि जाता सरीरंसि वड्डिया सरीरसमन्नागता सरीरं चेव अभिउंजियाण चिट्ठति, एवामेव धम्मा वि पुरिसादीया जाव चिट्ठन्ति । एवं गण्डे वम्मीके थूभे रुक्खे वणसण्डे पुक्खरिणी णवरं पुढवीय जाता भाणियव्वा, उदग पुक्खले उदगं णेतव्वं । से जहा णामते अगणिकाए सिया अरणीय आते जाव अरणीं चेव अभिभूय चिट्ठति, एवामेव धम्मा वि पुरिसादीया तं चेव ।
पुरुष से धर्म (ग्राम्यधर्म अर्थात् विषय-विकारजनित धर्म) की आदि होती है। वह पुरुष प्रधान, पुरुष ज्येष्ठ, पुरुष-कल्पित, पुरुष प्रद्योतित ( प्रकाशित), पुरुष - समन्वित और पुरुष को केन्द्रित करके रहता है। जैसे पीड़ादायक रोग विशेष शरीर में उत्पन्न होता है, बढ़ता है, समन्वित होकर शरीर से जुड़कर रहता है वैसे ही पुरुष का धर्म पुरुष को घेरे रहता है। वैसे ही व्रण शरीर में, दीमक का टीला वन और वृक्षों
समूह में तथा जल में कमल पैदा होता है। विशेषता यह है कि ये वल्मीक पृथ्वी से ही उत्पन्न, वर्द्धित, समन्वित और जुड़े रहते हैं । कमल जल से उत्पन्न, वर्द्धित, समन्वित और जुड़े रहते हैं। जैसे अग्नि अरणी ( वृक्ष विशेष ) से उत्पन्न होती है और
22. दगभाल अध्ययन 321