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16. सोलसं सोरियायणज्झयणं
जस्स खलु भो विसयायारा ण परिस्सवन्ति इन्दिया वा दवेहिं, से खलु उत्तमे पुरिसे त्ति सोरियायणे ण अरहता इसिणा बुइतं। तं कहमिति? मणुण्णेसु सद्देसु सोयविसयपत्तेसु णो सज्जेज्जा णो रज्जेज्जा णो गिज्झेज्जा णो मुझेज्जा णो विणिघातमावज्जेज्जा। मणुण्णेसु सद्देसु सोत्तविसयपत्तेसु सज्जमाणे रज्जमाणे गिज्झमाणे मुज्झमाणे आसेवमाणे विप्पवहतो पावकम्मस्स आदाणाए भवति। तम्हा मणुण्णामणुण्णेसु सद्देसु सोयविसयपत्तेस णो सज्जेज्जा णो रज्जेज्जा णो गिज्झेज्जा णो मुज्झेज्जा णो आसेवमाणे वि (प्पवहतो.....भवेज्जा)। एवं अण्णे रूवेसु गंधेसु रसेसु फासेसु। एवं विवरीएसु णो दूसेज्जा। ___ भो मुमुक्षु! जिसके इन्द्रियों का वेग द्रवित वस्तु–जल की तरह विषयाचार में नहीं बहता है, वह निश्चय से उत्तम पुरुष है।
ऐसा अर्हत् शौर्यायण ऋषि बोले
उन इन्द्रियों के वेग का बहाव किस प्रकार का है? मुमुक्षु श्रोत्रेन्द्रिय विषय को प्राप्त मनोज्ञ शब्दों में आसक्त न हो, अनुरक्त न हो, लुब्ध न हो, मोहित न हो, और न अपने में व्याघात का अनुभव करे। कर्णेन्द्रिय विषय को प्राप्त मनोज्ञ शब्दों में आसक्त, अनुरक्त, लोलुप और मोहित होकर सेवन करने वाला और उसमें बहने वाला पाप-कर्मों को ग्रहण करता है। अतः मुमुक्षु कर्णेन्द्रिय विषय को प्राप्त मनोज्ञ शब्दों में न आसक्ति करे, न अनुराग करे, न गृद्ध हो, न मोहित हो, न उपसेवना करे और न उसमें डूबे। इसी प्रकार रूप (चक्षुरिन्द्रिय), गन्ध (घ्राणेन्द्रिय), रस (जिह्वेन्द्रिय) और स्पर्श (स्पर्शेन्द्रिय) के विषय को प्राप्त मनोज्ञ पर अनुरागादि न करे। इसी प्रकार श्रोत्र-चक्षु-घ्राण-जिह्वा और स्पर्शेन्द्रिय के विषय को प्राप्त अमनोज्ञ शब्द, रूप, गन्ध, रस एवं स्पर्श पर द्वेष न करे।
Know it aspirant, he is an elevated soul whose senses flow not libidinously towards their objects like a fluid.
Shauryayan, the seer, further eleborated regarding the nature of sensual outflow. Let not the aspirant be stirred, moved, perturbed, enticed and allured of tempting sounds. One whose ears are prone to fall for enticing, tempting, bewitching sounds
16. शौर्यायण अध्ययन 303