________________
दुक्खं खवेति जुत्तप्पा, पावं मीसे वि बंधणे । जधा मीसे वि गाहम्मि, विसपुप्फाण छड्डणं । । 17 ||
17. जिस प्रकार मिश्रित फूलों में से विवेकशील मनुष्य विष फूलों को छोड़कर अच्छे फूलों को ग्रहण करता है । उसी प्रकार विवेकशील आत्मा इन मिश्रित लब्धियों में से पाप और बन्धनकारी लब्धियों का त्याग कर, प्रशस्त लब्धियों को ग्रहण कर दुःख का क्षय करता है।
17. As a wise being culls fragrant flowers eliminating the pernicious ones, so an accomplished soul embraces benefic deeds and steers clear off the malefic ones.
सम्मत्तं च दयं चेव, सम्ममासज्ज दुल्लहं । ण धम्मादेज्ज मेधावी, मम्मगाहं जहारिओ ।।18।।
18. मेधावी आत्मज्ञ दुर्लभ सम्यक्त्व (सम्यक् दर्शन-ज्ञान) को पाकर उसका सम्यक् प्रकार से रक्षण करे। उसके रक्षण में तनिक भी प्रमाद न करे। जैसे शत्रु के मर्म को प्राप्त कर उसका शत्रु प्रमाद नहीं करता है।
18. A wise knower of self should keep a constant vigil over a true perspective and assiduously protect itself from lethargy just as one keeps a wakeful eye on an enemy.
णेहवत्तिक्खए दीवो, जहा चयति संततिं ।
आदाणबंधरोहम्मि, तहऽप्पा भव संतति ॥19॥
19. जिस प्रकार तैल और बाती के क्षय होने पर दीपक दीपकलिका (लौ) रूप सन्तति का क्षय करता है उसी प्रकार आत्मा आदान / ग्रहण और बन्ध का अवरोध करने पर भव- परम्परा का क्षय करता है।
19. As a lamp witnesses the expiry of flame and its wick and oil exhaust, so the soul witnesses the happy outcome by refusing to further acquire and bind itself with Karmas any more.
दोसादाणे णिरुद्धम्मि, सम्मं सत्थाणुसारिणा । पुव्वाउत्ते य विज्जाए, खयं वाही णियच्छती ।। 20।।
20. सम्यक् ज्ञानपूर्वक शास्त्रानुसार आचरण कर, दोषों-पापों के आगमन को रोककर और पूर्वार्जित विद्या ( मिथ्याज्ञान) को नियन्त्रित कर कर्म-व्याधि का क्षय करता है।
20. The Karmic calamity can be warded off by prohibiting all sinful deeds and gradual exhaustion of accumulated Karmas.
9. महाकाश्यप अध्ययन 275