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9. सोपादान, (ग्रहणरूप सकाम), निरादान (अग्रहणरूप अकाम) विपाकोदय (सविपाका), प्रदेशोदय आदि और उपक्रम (अनुदित कर्मों को उदय में लाना) सहित तप से कर्मों की निरन्तर निर्जरा होती है।
9. Dissolving the selfish and selfless Karmas and turning the latent ones into patent form will result in liberation from accumulated Karmas by means of penances.
संततं बंधते कम्मं, निज्जरेति य संततं।
संसारगोयरो जीवो, विसेसो उ तवो मतो।।10। 10. संसार में भ्रमण करने वाली आत्मा निरन्तर कर्म बांधती है और निरन्तर उन कर्मों की निर्जरा भी करती है। किन्तु, तप से होने वाली निर्जरा ही विशिष्ट निर्जरा है।
___10. The soul incessantly creates and simultaneously destroys Karmas during its mundane course. However, dissolution of Karmas is best achieved as a result of penances.
अंकुरा खंध बंधीओ, जहा भवइ वीरुहो।
कम्मं तहा तु जीवाणं, सारासारतरं चित्तं।।11।। 11. जैसे अंकुर से स्कन्ध बनता है, स्कन्ध से शाखाएं विकसित होती हैं और शाखाओं से वृक्ष बनता है। इसी प्रकार आत्मा भी शुभाशुभ कर्मों से स्थिति करता है। अर्थात् आत्मा के शुभाशुभ कर्म भी इसी प्रकार विकसित/वर्द्धित होते हैं।
11. Seedling causes trunk, which, in turn, gives rise to proliferating branches. Similar is the process of generation of good and evil Karmas by soul.
उवक्कमो य उक्केरो, संछोभो खवणं तथा।
बद्धपुटुनिधत्ताणं, वेयणा तु णिकायिते।।12।। 12. बद्ध, स्पृष्ट और निधत्त कर्मों में उपक्रम, उत्कर, संक्षोभ और क्षय हो सकता है, किन्तु निकाचित कर्म का वेदन/अनुभव करना ही पड़ता है।
12. Latent, accumulated and deferred Karmas may stay unmanifested and may be weakened or written off but the patent ones are bound to cause suffering and can never be evaded.
उक्कड़ढंतं जधा तोयं, सारिज्जंतं जधा जलं। संखविज्जा णिदाणे वा, पावं कम्मं उदीरती।।13॥
9. महाकाश्यप अध्ययन 273