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मिच्छत्तं अनियत्ती य, पमादो यावि णेगहा।
कसाया चेव जोगा य, कम्मादाणस्स कारणं।।5।। 5. मिथ्यात्व, अनिवृत्ति (अविरति), अनेक (पाँच) प्रकार का प्रमाद, कषाय और योग कर्मादान-कर्मग्रहण करने के कारण हैं।
5. Falsity, non-purgation of urges, fivefold lethargy, nonspiritual accumulation and attachment generate Karmas and their accumulation.
जहा अंडे जहा बीए, तहा कम्मं सरीरिणं।
संताणे चेव भोगे य, नाणावण्णत्तमच्छड्।।6।। 6. जैसा अण्डा होगा, जैसा बीज होगा (वैसा ही पक्षी और धान्य होगा।) इसी प्रकार जैसे कर्म होंगे वैसे ही देहधारियों को सन्तान और भोग प्राप्त होंगे। कर्म के ही कारण इनमें विविधता प्राप्त होती दिखाई देती है।
6. As the ovum and seed so the outcome. As the actions so the progeny of individuals. It is actions or Karmas that evince such a numberless variety of destiny.
निव्वत्ती वीरियं चेव, संकप्पे य अणेगहा।
नाणावण्णवियक्कस्स, दारमेयं हि कम्मुणो।।7।। 7. निष्पत्ति (भव/रचना), पुरुषार्थ, अनेक प्रकार के संकल्प और विविध प्रकार के वितर्क ही कर्म के द्वार हैं।
7. Manifestation, enterprise, manifold resolutions and ideations generate Karmas.
एस एव विवण्णासो, संवुडो संवुडो पुणो।
कमसो संवरो नेओ, देससव्वविकप्पिओ।।8।। 8. पूर्वोक्त कर्म-द्वार ही आत्मा के विपर्यास (वैभाविक) रूप हैं। अतः इन कर्म-द्वारों का पुनः-पुनः निरोध करता हुआ आत्मा को पाप से संवृत करे तथा क्रमशः देश संवर और सर्व संवर की ओर बढ़ता जावे।
8. These seeds of Karmas present the soul in its adventitious form. Hence it is enjoined upon each of us to smother these Karma generators then and there to protect the soul from sin and proceed towards Karma annihilation, complete or incomplete.
सोवायाणा निरादाणा, विपाकेयरसंजया।
उवक्कमेण तवसा, निज्जरा जायए सया।।१।। 272 इसिभासियाई सुत्ताई