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________________ 9. नवमं महाकासवज्झयणं जाव जाव जम्मं ताव ताव कम्म। कम्मुणा खलु भो पया सिया, समियं उवनिचिज्जइ अविचिज्जइ य। महइ–महाकासवेण अरहता इसिणा बुइतं। जब-जब तक जन्म है तब-तब तक कर्म है। भो मुमुक्षु! निश्चय ही कर्म से प्रजा/भव-परम्परा उत्पन्न होती है। सम्यक् प्रवृत्ति से इन कर्मों का ह्रास और नाश (क्षय) होता है। ऐसा अर्हत्, श्रेष्ठ महाकाश्यप ऋषि बोले____So long as there is life, there is Karmas. Be aware O aspirant, of Karmas, that generate existence. These Karmas gradually decline and evaporate by means of equanimitous character. So said, Mahakashyap seer, the great : कम्मुणा खलु भो अप्पहीणेणं पुणरवि आगच्छइ हत्थच्छेयणाणि पायच्छेयणाणि एवं कण्ण नक्क उ? जिब्भ सीसदंडणाणि, उदिण्णेण जीवो कोदृणाणि पितृणाणि तज्जणाणि तालणाणि, वहणाई बंधणाई परिकिलेसणाई, अंदुबंधणाई नियलबंधणाणि जावजीवबंधणाणि नियलजुयलसंकोडणमोडणाई हिययुप्पाडणाई दसणुप्पाडणाई उल्लम्बणाई ओलम्बणाई घंसणाई घोलणाई पीलणाई सीहपुच्छणाई कडग्गिदाहणाई भत्तपाणनिरोहणाई, दोगच्चाइंदोभत्ताइंदोमणस्साइंभाउमरणाइं भगणिमरणाई पुत्तमरणाई धूयमरणाई भज्जमरणाई अण्णाणि य सयण-मित्तबंधुवग्गमरणाई तेसिं च णं दोगच्चाई दोभत्ताई दोमणस्साई अप्पियसंवासाइं पियविप्पओगाई हीलणाई खिंसणाई गरहणाई पब्वहणाइं परिभवणाई आकडढणाई अण्णयराइं च दुक्खदोमणस्साई पच्चणुभवमाणे अणाइयं अणवदग्गं दीहमद्धं चाउरंतसंसारसागरं अणुपरियट्टति। कम्मुणा पहीणेणं खलु भो जीवो नो आगेच्छति हत्थच्छेदणाणि ताइंचेव भाणियव्वाइंजाव संसारकंतारं वीईवइत्ता सिवमयलमरुयमक्क्ख यमव्वाबाहमपुणरावत्तं सासयं ठाणमब्भुवगए चिटुंति। भो मुमुक्षु! निश्चयपूर्वक आत्मा कर्म-रहित न होने पर संसार में पुनः पुनः आता है। (संसार में रहते हुए कहीं इसके) हाथ का छेदन होता है। कहीं पैर काटे 9. महाकाश्यप अध्ययन 269
SR No.006236
Book TitleRushibhashit Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVinaysagar, Sagarmal Jain, Kalanath Shastri, Dineshchandra Sharma
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year2016
Total Pages512
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_anykaalin
File Size33 MB
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