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5. पंचमं पुप्फसालज्झयणं
माणो पच्चोतरित्ताणं विणए अप्पाणुवदंसए । पुप्फसालपुत्ते अरहता इसिणा बुइयं ।
मानरहित होकर विनय के द्वारा आत्म-स्वरूप को देखने वाले अर्हत् पुष्पशालपुत्र ऋषि ऐसा कहते हैं।
Shedding all vanity, Pushpashalputra, the enlightened, speaks thus in all modesty.
पुढविं आगम्म सिरसा, थले किच्चाण अंजलिं । पाण- भोजण से चिच्चा, सव्वं च सयणासणं ।।1।।
1. उन्होंने पृथ्वी पर मस्तक रख कर, भूमि पर (मस्तक के नीचे) अंजलिबद्ध होकर, भोजन - पानी और समस्त शयनासनों का त्याग कर दिया।
1. He bowed in obeisance and clasped his palms in a modest posture. He discarded all meals, drink and luxurious mattresses.
णमंसमाणस्स सदा, संति आगम्म वट्टती । कोध-माणप्पहीणस्स, आता जाणति पज्जवे ॥2॥
2. नमन करने वाला अर्थात् विनयमान सर्वदा शान्ति और आगमिक ज्ञान में विचरण करता है। क्रोध और मानरहित आत्मा समस्त पर्यायों को जानता है।
2. One shorn of ego is ever endowed with scriptural wisdom and tranquillity. A self freed from wrath and ego is ever aware of all the modes of matter that are extant.
ण पाणे अतिवातेज्जा, अलियादिण्णं च वज्जए । ण मेहुणं च ण सेवेज्जा, भवेज्जा अपरिग्गहे ॥। 3 ॥
3. प्राणों की हिंसा न करें। अलीक वचन (असत्य) और चौर्य वृत्ति का त्याग करें। मैथुन का सेवन न करें और अपरिग्रही बनें।
3. No life be destroyed. Insincere utterance and theft be abandoned. Libido, be never indulged and acquisition ever discarded.
5. पुष्पशालपुत्र अध्ययन 259