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एवं से सिद्धे बुद्धे विरते विपावे दंते दविए अलं ताई णो पुरवि इच्चत्थं हव्वमागच्छति त्ति बेमि ।
(इइ) चउत्थं आंगीरसनामज्झयणं ।
इस प्रकार वह सिद्ध, बुद्ध, विरत, निष्पाप, जितेन्द्रिय, वीतराग एवं पूर्ण त्यागी बनता है और वह भविष्य में पुनः इस संसार में नहीं आता है।
ऐसा मैं (अर्हत्, भारद्वाजगोत्रीय अंगऋषि / आंगीरस नामक ऋषि) कहता हूँ ।
This is the means, then for an aspirant to attain purity, enlightenment, emancipation, piety, abstinence and nonattachment. Such being is freed of the chain of reincarnations. Thus I (Angiras Bharadwaja the seer) do pronounce. भारद्वाज आंगीरस ऋषि नामक चौथा अध्ययन पूर्ण हुआ । 4 ।
258 इसिभासियाई सुत्ताई
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