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जेण जाणामि अप्पाणं, आवी वा जइ वा रहे । अज्जयारिं अणज्जं वा, तं णाणं अयलं धुवं ॥3॥
3. जिसके द्वारा मैं अपनी आत्मा को जान सकूं और जिस समय प्रत्यक्ष या परोक्ष में होने वाले शोभन अथवा अशोभन कर्मों को पहचान सकूं, वही ज्ञान अचल और शाश्वत है।
3. That knowledge is true and eternal which capacitates us to discern the good from the evil, be it tangible or intangible. सुयाणि भित्ति चित्तं, कट्ठे वा सुणिवेसितं । मणुस्सहिदयं पुणिणं, गहणं दुव्वियाणकं ॥4॥
4. भित्ति (दीवार) और काष्ठ पर चित्रित चित्रों को समझना सरल है किन्तु मानव के हृदय का अवधारण ( निश्चय) करना गहन और दुःशक्य है।
4. It is easy to appreciate murals on wall and carvings on wood while it is well-nigh impossible to fathom the human heart. अण्णहा स मणे होति, अण्णं कुणंति कम्मुणा । अण्णमण्णाणि भासतो, मणुस्सगहणे हु से ।। 5 ।।
5. जिसके मन में भिन्नता है, जिसका कर्म (कार्य) भिन्न है तथा जिसकी वाणी में भिन्नता है, ऐसा मनुष्य गहन (दुर्भेद्य) होता है ।
5. One, whose thought, word and deed are at variance with one another is truly enigmatic.
तणखाणु- कण्टक- लता - घणाणि वल्लीघणाणि गहणाणि । सढ - णियडिसंकुलाई, मस्सहिदया
गहणाणि ।।6।।
6. घास, ठूंठ, कण्टक युक्त लता - समूह और वल्लिसमूह की गहनता के समान मनुष्य का हृदय शठता (क्षुद्रता) से व्याप्त, संकुलित और दुर्बोध्य होता है।
6. Human heart is as crooked, puzzling and incomprehensible as tangled tufts or grass, thorny creepers and jumbled up vegetation.
भुंजित्तुच्चावए भोए, संकप्पे कडमाणसे । आदाणरक्खी पुरिसे, परं किंचि ण जाणति । । 7 ।।
7. परिग्रह पिपासु मनुष्य संकल्प पूर्वक अपना मानस इस प्रकार का बना लेता है कि 'मैं उच्चतर भोगों का उपभोग करता रहूँ'। इस संकल्प के अतिरिक्त वह कुछ भी नहीं जानता है ।
4. अंगिरस अध्ययन 253