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4. चउत्थं आंगीरसज्झयणं
आयाणरक्खी पुरिसे, परं किंचि ण जाणती।
असाहुकम्मकारी खलु अयं पुरिसे, पुणरवि पावेहिं कम्मेहिं चोदिज्जती णिच्चं संसारम्मि। अंगरिसिणा भारदाएणं अरहता इसिणा बुइतं।
आदानरक्षी-ग्रहण का रक्षण करने वाला अर्थात् परिग्रह का धारक और रक्षक मानव दूसरी कोई बात नहीं जानता है। ऐसा मानव वस्तुतः असाधु/अशोभनीय कर्म करने वाला होता है और पुनः पुनः पापकर्मों के द्वारा निरन्तर संसार को प्रेरित करता है अर्थात् भव-भ्रमण को बढ़ावा देता रहता है। .
ऐसा अर्हत् भारद्वाज गोत्रीय अंग ऋषि (अंगिरस नामक ऋषि) कहते हैं।
An acquisitive and possessive individual becomes a monomaniac. He incessantly commits evil deeds and raises the bulwark of mundaneness around himself.
This is the thesis of the enlightened Angiras hailing from the celebrated Bharadwaja family.
णो संवसितुं सक्कं, सीलं जाणित्तु माणवा।
परमं खलु पडिच्छन्ना, मायाए दुट्ठमाणसा।।1।। 1. दुष्टहृदय वाले मनुष्य सचमुच में माया-दम्भ से आच्छादित रहते हैं। अतः उनके शील-स्वभाव को जानकर उनके साथ रहना मानव के लिये शक्य/संभव नहीं है।
1. Callous individuals are addicted to attachment and vanity Any proximity with them is beyond redemption.
णियदोसे णिगृहंते चिरं पि णोवदंसए।
'किह मं कोविण जाणं', जाणे णत्थि हियं सयं।।2।। 2. वे अपने दोषों को छिपाते हैं, चिरकाल तक प्रकट नहीं होने देते हैं और वे समझते हैं कि 'हमारे दोषों को कोई नहीं जानता।' वस्तुतः ऐसा समझने वाले स्वहित को नहीं जानते हैं।
2. They excel in concealing their angularities. However, their simulation is not fool-proof and these ill-advised beings are inevitably exposed. 252 इसिभासियाइं सुत्ताई