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8. Wrath and allurement appear in various forms and shapes. They constitute bondage of the self.
तम्हा ते तं विकिंचित्ता, पावकम्मपवड्डणं।
उत्तमट्ठवरग्गाही, वीरियत्ताए परिव्वए।।9।। 9. अतः मुमुक्षु पूर्वोक्त पापवर्द्धनकारी प्रवृत्तियों का परित्याग (विनाश) करे, सर्वोत्तम परमार्थतत्त्व अथवा संयम को ग्रहण करे और आत्मबल को पूर्णरूप से जागृत (प्रकट) करे।
9. Let such aspirant steer clear of the above mentioned vices. He should cultivate piety and charity and regain his full spiritual stature.
खीरे दसिं जधा पप्प, विणासमुवगच्छति।
एवं रागो व दोसो व, बम्भचेरविणासणा।।10।। 10. जैसे दूध दूषण (तक्र संपर्क) को प्राप्त कर नष्ट हो जाता है वैसे ही राग और द्वेष के माध्यम/सम्पर्क से ब्रह्मचर्य नष्ट हो जाता है।
___10. As pollution precipitates milk, so does attachment aversion to continence.
जधा खीरं पधाणं तु, मच्छणा जायते दधिं।
एवं गेहिप्पदोसेणं, पावकम्मं पवड्ढ़ती।।11।। ____ 11. जैसे दही के सम्पर्क से दूध अपने दुग्धत्व का नाश कर दही बन जाता है वैसे ही गृहस्थ की मोहासक्ति के दोष से पापकर्म बढ़ते हैं।
11. As curd curdles milk irretrievably, so does vice to human soul, eclipsing its pristine contours.
रणे दवग्गिणा दड़ा, रोहंते वणपादवा।
कोहग्गिणा तु दड्ढाणं, दुक्खाणं ण णिवत्तती।।12।। 12. जंगल में दावाग्नि से जले हुए वन-वृक्ष पुनः उत्पन्न हो जाते हैं। उसी प्रकार क्रोधाग्नि से भस्म दुःख पुनः उत्पन्न हो जाते हैं। दुःखनाश नहीं होता है।
___12. As fire charred vegetation of a forest regerminates, so does the reviving vice, thanks to the wrathfulness of man.
सक्का वण्ही णिवारेतुं, वारिणा जलितो बहिं। सव्वोदहिजलेणावि, मोहग्गी दुण्णिवारओ।।13।।
250 इसिभासियाई सुत्ताई