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गेही -:
परिग्गहं गिण्हते जो उ, अप्पं वा जति वा बहुं । - मुच्छाय दोसेणं, लिप्पए पावकम्मुणा ।। 5 ।। 5. जो संयमी अल्प या अधिक परिग्रह को ग्रहण / धारण करता है वह आसक्ति एवं मोह के दोष से पापकर्मों में लिप्त हो जाता है।
5. An austere indulging in meagre or excessive acquisition attracts evil Karmic smear on account of the attachment and avarice involved.
कोहं जो उ उदीरेई, अप्पणो वा परस्स वा । तं निमित्ताणुबंधेणं, लिप्पते पावकम्मुणा ।।6।।
एवं जाव मिच्छादंसणसल्ले ।
6. जो अपने या पराये के क्रोध को प्रेरित करता (जगाता) है, उस निमित्त के अनुबन्ध (अनुसरण) से वह पापकर्मों में लिप्त होता है।
इसी प्रकार मिथ्यादर्शन-शल्य तक के पापकर्मों से वह लिप्त होता है। अर्थात् असत्य, स्तेय, मैथुन, मान, माया, लोभ, राग-द्वेष, कलह, अभ्याख्यान, पैशुन्य, परपरिवाद, रति-अरति, मायामृषा और मिथ्यादर्शन - शल्य के माध्यम से वह पापकर्मों से लिप्त होता है ।
6. One who provokes another to burst into anger shares the latter's sinful act.
It triggers a chain of vices beginning with misconception, perjury, theft, libido, vanity, avarice, attachment, jealousy and hostility.
पाणतिवातो लेवो, लेवो अलियवयणं अदत्तं च । मेहुणगमणं लेवो, लेवो परिग्गहं च ।।7।।
7. हिंसा लेप है। असत्य वचन और चोरी लेप हैं। मैथुनगमन (कामवासना) लेप है और परिग्रह लेप है। अर्थात् हिंसा, असत्य, चोरी, मैथुन और परिग्रह आत्मा बन्धन हैं।
7. Violence is a smear. So are falsehood and theft, libido and acquisition. These are bondages to the self.
कोहो बहुविहो लेवो, लेवो माणो य बहुविधविधीओ । माया य बहुविधा लेवो, लोभो वा बहुविधविधीओ।।8।।
8.
क्रोध के अनेक रूप और माया के विविध प्रकार के रूप लेप / बन्धन हैं। अनेक रूपात्मक माया और बहुविधात्मक लोभ भी (आत्मा के ) लेप / बन्धन हैं।
3. देवल अध्ययन 249