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sit Deval.
रहित) होता है, सम्यक् और सर्व प्रकार से अशुभवाणी और आक्रोश आदि से रहित होता है, सम्यक् और सम्पूर्ण रूप से श्रव्य (श्रवण करने योग्य सत्य) द्वारा उपशान्त होता है और सम्यक् रूप से वह सभी से परिवृत होता है तथापि उसकी कहीं पर भी आसक्ति नहीं होती है। अतः मैं भी समस्त कर्मजन्यलेपों से रहित होऊंगा।
इस प्रकार अर्हत् असित दविल (देवल) ऋषि बोले।
2. Intact of this smear, such a self is purged of all desire, attachment, yearnings, mundane enterprise, wrath, vanity, allurement and avarice. He abandons all urges for wealth, mansion, attires and incense. He is purged of all sins, ever composed and tranquil. He abstains from all unhappy utterance. He is ever content and inclines towards none. May I attain such a dispassionate state. Added Asit Deval.
सुहुमे व बायरे वा, पाणे जो तु विहिंसइ।
रागदोसाभिभूतप्पा, लिप्पते पावकम्मुणा।।1।। 1. जो आत्मा राग और.द्वेष से अभिभूत (पराजित) होकर सूक्ष्म अथवा स्थूल प्राणों (जीवों) की हिंसा करता है वह पापकर्मों से लिप्त होता है।
1. An individual's causing of loss of minute or tangible lives driven by attachment or animosity attracts evil karmic smear.
जो यसं भासते किंचि, अप्पं वा जड वा बह।
अप्पणहा परहा वा, लिप्पते पावकम्मुणा।।2।। जो किसी भी रूप में झूठ बोलता है चाहे वह अल्प हो या बहुत हो, चाहे वह अपने (हित के लिए बोला गया हो या दूसरे के (हित के लिए बोला गया है। जो असत्य बोलता है वह पाप कर्म से लिप्त होता है।
अदिन्नं गिण्हते जो उ, उप्पं वा जइ वा बहु।
अप्पणहा परहा वा, लिप्पते पावकम्मुणा।।3।। ... जो अदत्त (बिना दिए) ग्रहण करता है चाहे वह अल्प हो या अधिक हो। स्वहित के लिए हो या दूसरे के लिए हो वह पाप कर्म से लिप्त होता है।
मेहणं सेवत्ते जो उ, तेरिच्छं दिव्य-माणुसं।
रागादोसाभितप्ता, लिप्पते पावकम्मुणा।।4।। जो मैथुन का सेवन करता है, चाहे वह तिर्यञ्च (पशु), देवता या मनुष्य से सम्बन्धित हो। वह राग-द्वेष से अभितप्त अर्थात् युक्त होकर पापकर्म से लिप्त होता है। 248 इसिभासियाइं सुत्ताई