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3. तईयं दविलज्झयणं
1. भवितव्वं खलु भो सव्वलेवोवरतेणं । लेवोवरता खलु भो जीवा अणेगजम्मजोणीभयावत्तं अणादीयं अणवदग्गं दीहमद्धं चातुरंतं संसारसागरं वीतीकंता सिवमतुलमयलमव्वाबाहमपुणब्भवमपुणरावत्तं सासतं ठाणमब्भुवगता चिट्ठति ।
1. भो मुमुक्षु ! तुम्हें कर्मजन्य समस्त लेपों से रहित होना चाहिए । भो प्राणी ! कर्मजन्य लेप से उपलिप्त जीव एकाकी अनेक जन्म-योनियों के द्वारा अपरिमित, लम्बे रास्ते वाले, भयाकुल और चक्र ( पहिया ) के समान विशाल संसार रूपी समुद्र में गोते खाता रहता है और कर्मलेप से उपरत होने पर वह शिवरूप, अतुलअसाधारण, अचल-स्थिर रूप, अव्याबाध- बाधा - पीड़ारहित, अपुनर्भव- पुनः जन्मरहित, अपुनरावर्त - पुनरागमन से रहित, शाश्वत - सिद्धगति स्थान को प्राप्त कर स्थिर रहता है।
1. Be thou freed of karmic adhesions, O being. A being besmeared with karma keeps revolving along an endless, desolate spiral course, rising and dipping in the crests and troughs of this fathomless ocean, we call Universe. Once shorn of this Karmic smear, he stays supreme on the empyrean heights of Shivahood, unmoved and painless, freed from death and birth.
2. से भवति सव्वकामविरते सव्वसंगातीते सव्वसिणेहतिक्कंते सव्ववारियपरिनिव्वुडे सव्वकोहोवरते सव्वमाणोवरते सव्वमायोवरते सव्वलोभोवरते सव्ववासादाणोवरते सुसव्वसंवुडे सुसव्वसव्वोवरते सुसव्वसव्वोवसंते सुसव्वपरिवुडे, णो कत्थई सज्जति य,. तम्हा सव्वलेवोवरए भविस्सामि त्ति कट्टु ।
असितेण दविलेणं अरहता इसिणा बुझतं ।
2. लेपरहित होने से वह आत्मा समस्त वासनाओं से रहित होता है, समस्त आसक्तियों से रहित होता है, समस्त प्रकार के स्नेह से रहित होता है, समस्त बाह्य पराक्रमों से रहित होता है, समस्त प्रकार के क्रोध, मान, माया, लोभ से रहित होता है, समस्त प्रकार के वासादान — वस्त्र, निवास स्थान अथवा सुगन्धित पदार्थों के ग्रहण से निवृत्त होता है, सम्यक् प्रकार से पूर्णरूपेण संवरयुक्त (सावद्य - पाप
3. देवल अध्ययन 247