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________________ का उल्लेख आवश्यक निर्युक्ति और सूत्रकृतांग निर्युक्ति में हुआ है। आवश्यक निर्युक्ति में वे ऋषिभाषित पर निर्युक्ति लिखने की प्रतिज्ञा करते हुए निम्न गाथा प्रस्तुत करते हैं— आवस्सगस्स दसकालिअस्स तह उत्तरज्झमायारे । सूयगडे निज्जुत्तिं वच्छामि तहा दसाणं च ।। कप्पस्स य णिज्जुतिं, ववहारस्सेव परमणिउणस्स । अपण्णत्ती, वुच्छं इसिभासिआणं च।। - आवश्यक निर्युक्ति 84-85 इसके पश्चात् सूत्रकृतांग-निर्युक्ति में वे ऋषिभाषित के स्वरूप और महत्त्व को स्पष्ट करते हुए कहते हैं कि तह वि य कोई अत्थो उप्पज्जइ तम्मि समयम्मि । पुव्वभणिओ अणुमओ य होइ इसिभासिएसु जहा ।। - सूत्रकृतांग-निर्युक्ति 189 अर्थात् इसी प्रकार किसी सिद्धान्त ( अन्य परम्परा) में कोई विशेष अर्थ परिलक्षित होता है, तो वह ऋषिभाषित के समान पूर्वकथित और मान्य होता है। इस निर्युक्ति गाथा का एक फलित यह भी है कि ऋषिभाषित पूर्व-कथित और मान्य है । यदि पूर्व साहित्य पार्श्व की परम्परा का साहित्य है, जो महावीर की परम्परा द्वारा मान्य है, तो ऋषिभाषित पूर्व साहित्य का ग्रन्थ होने से पार्श्व की परम्परा का ग्रन्थ माना जाएगा; जिसे महावीर की परम्परा में मान्य किया गया था। ज्ञातव्य है कि शुब्रिंग ने अपनी भूमिका में इसे पार्श्व की परम्परा से सम्बद्ध माना है। भद्रबाहु (आर्यभद्र) की आवश्यक निर्युक्ति से ऋषिभाषित निर्युक्ति लिखी जाने की सूचना मिलती है। किन्तु, वर्तमान में ऋषिभाषित नियुक्ति अनुपलब्ध है। परिणामतः आज विद्वानों में इस विषय पर भी मतभेद है कि वे यह नियुक्ति लिख पाये थे, या नहीं। सामान्य विश्वास यही है कि उन्होंने ऋषिभाषित पर नियुक्ति लिखने की प्रतिज्ञा अवश्य की थी, किन्तु वे लिख नहीं पाये । उनके ऋषिभाषित निर्युक्ति नहीं लिख पाने के दो कारण हो सकते हैं; प्रथम तो यह कि इस नियुक्ति के लिखने का क्रम आने के पूर्व ही ये स्वर्गवासी हो गये हों अथवा दूसरा यह कि ऋषिभाषित में अन्य परम्पराओं के ऋषियों के विचार संकलित होने से उन्होंने स्वयं ही उस पर नियुक्ति लिखने का विचार त्याग दिया हो । किन्तु, आचारांग चूर्णि में निर्दिष्ट 'इसिमण्डलत्थू' एवं उपलब्ध ऋषिमण्डल106 इसिभासियाई सुत्ताई
SR No.006236
Book TitleRushibhashit Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVinaysagar, Sagarmal Jain, Kalanath Shastri, Dineshchandra Sharma
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year2016
Total Pages512
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_anykaalin
File Size33 MB
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