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________________ ऐतिहासिक व्यक्ति नहीं हैं। लोकपालों को धर्मोपदेशक माने जाने के कारण ही इन्हें ऋषिभाषित में स्थान दिया गया होगा। वैसे इनके साथ लगा अर्हत् ऋषि पद विचारणीय है। जहाँ तक इन चारों ऋषियों के उपदेशों का प्रश्न है वहाँ प्रथम तीन अर्थात् सोम, यम और वरुण के उपदेश मात्र एक-एक गाथा में मिलते हैं। मात्र वैश्रमण का उपदेश विस्तार से 53 गाथाओं में मिलते हैं। सोम का उपदेश है कि साधक ज्येष्ठ, मध्यम या कनिष्ठ किसी भी पद पर हो, अल्प से अधिक प्राप्त करने का प्रयत्न करे।310 यम कहते हैं जो लाभ में प्रसन्न और अलाभ में कुपित नहीं होता है वही मनुष्यों में श्रेष्ठ है।311 वरुण का कथन है कि जो राग-द्वेष से अप्रभावित रहता है वही सम्यक् निश्चय कर पाता है।312 जहाँ तक वैश्रमण के उपदेशों का प्रश्न है वे सर्वप्रथम तो काम के निवारण और पापकर्म नहीं करने का सामान्य उपदेश ही देते हैं। इनके साथ ही अहिंसा के महत्त्व एवं आत्मतुल्यता का आदर्श प्रस्तुत कर अहिंसा के पालन का संदेश देते हैं।313 इस अध्याय में अगंधण कुल के सर्प,314 तैल-पात्र315 तथा पुण्य-पाप की स्वर्ण और लौह बेड़ियों से तुलना316 के उदाहरण प्रयुक्त किये गये हैं। जो आगे चलकर उत्तराध्ययन, दशवैकालिक, आवश्यकचूर्णि, कल्पसूत्रटीका एवं कुन्दकुन्द के समयसार में विकसित हुए हैं। यह स्पष्ट है कि जैन धर्म एवं दर्शन का कोई भी ऐसा पक्ष नहीं है जिसके मूल बीज ऋषिभाषित में उपलब्ध नहीं हों। वस्तुतः आज आवश्यकता इस बात की है कि इसमें वर्णित व्यक्तित्वों और उनके उपदेशों का तुलनात्मक दृष्टि से गम्भीर अध्ययन किया जाये। इस ग्रन्थ के तुलनात्मक अध्ययन की सबसे महत्त्वपूर्ण देन यह हो कि जहाँ एक ओर हम भारत की विभिन्न धार्मिक परम्पराओं की निकटता के दर्शन करेंगे, वहीं आज की जैन परम्परा में कहाँ से क्या आया है? इसका भी बोध हो सकेगा। ऋषिभाषित नियुक्ति और ऋषिमण्डल यहाँ ऋषिभाषित नियुक्ति और ऋषिमण्डल के सम्बन्ध में भी विचार करना आवश्यक प्रतीत होता है। आचार्य भद्रबाहु के नियुक्ति साहित्य में ऋषिभाषित ऋषिभाषित : एक अध्ययन 105
SR No.006236
Book TitleRushibhashit Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVinaysagar, Sagarmal Jain, Kalanath Shastri, Dineshchandra Sharma
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year2016
Total Pages512
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_anykaalin
File Size33 MB
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