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________________ उपलब्ध नहीं हुआ। जैन स्रोतों से यह भी निश्चित हो जाता है कि ये महावीर के समकालीन थे, जिसे परम्परागत रूप में भी मान्य किया गया है। जहाँ तक ऋषिभाषित में उपलब्ध इन्द्रनाग के उपदेशों का प्रश्न है, वे सर्वप्रथम यह बताते हैं कि आजीविका के लिए किया जाने वाला तप तथा सुकृत निरर्थक है। विषय-वासना में डूबा हुआ प्राणी अपना विनाश ही करता है। मुनिवेश को आजीविका का साधन नहीं बनाना चाहिए। मुनि को विद्या, तन्त्र-मन्त्र, दूत-कर्म, भविष्य फल कथन आदि से भी आजीविका प्राप्त नहीं करनी चाहिए। इस प्रकार इनके उपदेश का सार लोकैषणा से ऊपर उठकर संयम की साधना है। सामान्य रूप से यह उपदेश अनेक प्रसंगों में पाया जाता है। इस अध्याय की गाथा 13 उत्तराध्ययन और धम्मपद में यथावत् रूप में मिलती है। इसी प्रकार 16वीं गाथा ऋषिभाषित के जण्णवक्क (याज्ञवल्क्य) नाम के 12वें अध्याय में तथा कुछ शाब्दिक परिवर्तन के साथ दशवैकालिक में भी मिलती है। 42-45 सोम, यम, वरुण एवं वैश्रमण ऋषिभाषित के अन्तिम चार अध्याय क्रमशः सोम, यम, वरुण और वैश्रमण से सम्बन्धित हैं। यद्यपि प्रस्तुत अध्यायों में इन्हें अर्हत् ऋषि कहा गया है और संग्रहणी गाथा के अनुसार ये चारों प्रत्येकबुद्ध भगवान महावीर के युग में हुए, ऐसा माना जाता है। किन्तु, इनकी ऐतिहासिकता के सम्बन्ध में हमें किन्हीं भी स्रोतों से कोई भी जानकारी उपलब्ध नहीं होती है। यद्यपि जैन साहित्य में सोम नामक ब्राह्मण के पार्श्व की परम्परा में दीक्षित होने के उल्लेख हैं और यह भी माना गया है कि ये अपनी मृत्यु के पश्चात् शुक्र के रूप में उत्पन्न हुए।305 इसी प्रकार वरुण का उल्लेख एक श्रमणोपासक के रूप में हुआ है, जो रथ-मूसल संग्राम में मारा गया था और मर कर देव हुआ। इसका विश्वास था कि युद्ध में मरने पर स्वर्ग मिलता है। 306 इसी प्रकार यमदग्नि के पिता के रूप में यम का भी उल्लेख है। 307 यद्यपि ये ही व्यक्ति ऋषिभाषित के ऋषि हैं ऐसा स्पष्टतया प्रतीत नहीं होता है। इसी प्रकार बौद्ध परम्परा में भी सोम, वरुण आदि नाम के कुछ व्यक्तियों का उल्लेख है, किन्तु उनका सम्बन्ध ऋषिभाषित के इन ऋषियों से जोड़ पाना कठिन है। वस्तुतः जैन, बौद्ध एवं वैदिक तीनों परम्पराओं में इन्हें लोकपाल के रूप में स्वीकृत किया गया है। यद्यपि जहाँ जैन परम्परा में सोम, यम, वरुण और वैश्रमण-ये चार लोकपाल हैं,308 वहाँ वैदिक परम्परा में इन्द्र, अग्नि, यम और वरुण ये चार लोकपाल हैं।309 इन्हें धर्मोपदेष्टा माना गया है। उपनिषदों का यम नचिकेता सम्वाद प्रसिद्ध है। फिर भी ये चारों पौराणिक ही हैं, 104 इसिभासियाइं सुत्ताई
SR No.006236
Book TitleRushibhashit Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVinaysagar, Sagarmal Jain, Kalanath Shastri, Dineshchandra Sharma
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year2016
Total Pages512
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_anykaalin
File Size33 MB
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