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________________ के विनाश से दिखाया गया है। थोड़े-बहुत परिवर्तनों के साथ यह कथा जैन, बौद्ध और वैदिक तीनों परम्परा में पाई जाती है। वैदिक परम्परा में कृष्ण द्वैपायन या द्वैपायन का उल्लेख महाभारत में विस्तार से मिलता है। 297 वैदिक परम्परा में इनका प्रचलित नाम व्यास अथवा वेद व्यास है। इन्हें महर्षि पाराशर का पुत्र तथा महाभारत का रचयिता भी माना जाता है। इन्होंने भीष्म की आज्ञा से विचित्रवीर्य की पत्नियों से धृतराष्ट्र, पाण्डु और विदुर ये पुत्र उत्पन्न किये थे। शुकदेव को भी इनका पुत्र कहा जाता है। वैशम्पायन इनके प्रमुख शिष्य थे। महाभारत में इनके जीवन और उपदेशों का विस्तृत विवरण है, यद्यपि उसमें पौराणिक पक्ष अधिक और ऐतिहासिक पक्ष कम है। जैन, बौद्ध और वैदिक तीनों परम्पराओं में इनके उल्लेख से यह माना जा सकता है कि ये प्रागैतिहासिक काल के कोई ऐतिहासिक व्यक्ति हैं। यद्यपि औपनिषदिक प्राचीन साहित्य में इनके नाम का उल्लेख न होना विचारणीय अवश्य है, यद्यपि उसमें इनके पिता पाराशर और पाराशरी पुत्रों का उल्लेख है । 298 ऋषिभाषित में इनका जो उपदेश संकलित है, उसमें इच्छा को अनिच्छा में परिवर्तित करने का निर्देश है । 299 दूसरे शब्दों में ये आकांक्षा के प्रहाण का उपदेश देते हैं। उनका कथन है कि इच्छाओं के कारण ही प्राणी दुःख पाता है । इच्छाओं के वशीभूत हो माता-पिता, गुरुजन, राजा और देवता सभी की अवमानना कर देता है। इच्छा ही धनहानि, बन्धन, प्रिय वियोग और जन्म-मरण का मूल है। अतः इच्छाओं पर विजय प्राप्त करनी चाहिये, क्योंकि इच्छारहित होना ही सुख का मूल है। इस अध्याय की गाथा 2 एवं 3 कुछ शाब्दिक परिवर्तन के साथ ऋषिभाषित के 36वें अध्याय की गाथा 13-14 के रूप में मिलती है। इसी प्रकार इसका 'जहा थामं जहा बलं जधा विरियं' वाक्यांश दशवैकालिक में भी मिलता है। 41. इन्द्रनाग (इंदनाग) ऋषिभाषित का 41वां अध्याय इन्द्रनाग नामक अर्हत् ऋषि से सम्बन्धित है। ऋषिभाषित के अतिरिक्त इन्द्रनाग का उल्लेख आवश्यकनिर्युक्ति, 300 विशेषावश्यकभाष्य, 301 302 आवश्यकचूर्णि, आवश्यक हरिभद्रीयवृत्ति 303 और आचारांग की शीलाङ्कटीका में मिलता है। 304 ये बाल तपस्वी के रूप में प्रसिद्ध थे। गणधर गौतम ने इनसे सम्पर्क स्थापित किया था। इन्हें जीर्णपुर (जिण्णपुर) का निवासी बताया गया है। बौद्ध एवं वैदिक परम्परा में हमें इनका कोई उल्लेख ऋषिभाषित : एक अध्ययन 103
SR No.006236
Book TitleRushibhashit Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVinaysagar, Sagarmal Jain, Kalanath Shastri, Dineshchandra Sharma
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year2016
Total Pages512
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_anykaalin
File Size33 MB
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