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________________ स्तव (इसिमण्डल) को देखने से मुझे ऐसा लगता है कि ऋषिभाषित नियुक्ति लिखी अवश्य गई होगी, चाहे आज वह अनुपलब्ध हो। अपने वर्तमान रूप में इसिमण्डल को ऋषिभाषित की नियुक्ति तो नहीं माना जा सकता है, फिर भी मेरा विश्वास है कि इसमें ऋषिभाषित नियुक्ति की कुछ गाथाएँ यथावत् रूप में या परिवर्तित रूप में अवश्य सम्मिलित हैं। मेरे इस विश्वास के कुछ आधार हैं. जिस पर विद्वानों को गम्भीरतापूर्वक विचार करके अपनी प्रतिक्रियाएँ व्यक्त करनी चाहिए। समणी कुसुमप्रज्ञाजी ने भी अपनी भूमिका में इसका समर्थन किया है। सर्वप्रथम तो हमें यह देखना है कि नियुक्ति की शैली में तथा इसिमण्डल की शैली में क्या कुछ समानता है? नियुक्ति की शैली की विशेषता यह होती है कि ग्रन्थ के जिस भाग या अध्याय पर नियुक्ति लिखी जाती है, उसके प्रमुख शब्दों की व्युत्पत्तिपरक व्याख्या के साथ उस अध्याय की विषय वस्तु का भी संक्षेप में उल्लेख किया जाता है। इसिमण्डल में इसिभासियाई (ऋषिभाषित) की विषय-वस्तु का संक्षिप्त विवरण देने वाली निम्न दो गाथाएँ मिलती हैं नारयरिसिपामुक्खे, वीसं सिरिनेमिनाहतित्थम्मि। पन्नरस पासतित्थे, दस सिरिवीरस्स तित्थम्मि।। पत्तेयबुद्धसाहू, नमिमो जे भासिउं सिवं पत्ता। पणयालीसं इसिभासियाई अज्झयणपवराई।। -इसिमण्डल-44, 45 उपर्युक्त दोनों गाथाएँ स्पष्ट रूप से इसिभासियाई (ऋषिभाषित) पर लिखी जाने वाली किसी नियुक्ति अथवा अन्य व्याख्या ग्रन्थ की प्रारम्भिक गाथाएँ हो सकती हैं, वैसे ये दोनों गाथाएँ ऋषिभाषित की संग्रहणी गाथा के रूप में भी मानी जाती हैं। इसी प्रकार ऋषिमण्डल में नारद के सम्बन्ध में जो निम्न दो गाथाएँ उपलब्ध हैं वे भी ऋषिभाषित के नारद नामक अध्ययन की संक्षिप्त व्याख्या जैसी प्रतीत होती हैं सुच्चा जिणिंदवयणं, सच्चं सोयं ति पभणिओ हरिणा। किं सच्चं ति पवत्तो चिंतंतो जायजाइसरो।। संबुद्धो जो पढम, अज्झयणं सच्चमेव पन्नवई। कुच्छुल्लनारयरिसिं, तं वंदे सुगइमणुपत्तं।। —इसिमण्डल-42, 43 ऋषिभाषित : एक अध्ययन 107
SR No.006236
Book TitleRushibhashit Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVinaysagar, Sagarmal Jain, Kalanath Shastri, Dineshchandra Sharma
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year2016
Total Pages512
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_anykaalin
File Size33 MB
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