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________________ अपभ्रंश-महाकाव्य 1 वर्ण विषय के विस्तार की दृष्टि से ग्रंथ में वर्णन बाहुल्य का होना स्वाभाविक ही था । किन्तु वर्णन इस प्रकार के नहीं जो ऐतिहासिक दृष्टि से इतिवृत्तात्मक मात्र हों । वर्णनों में अनेक स्थल ऐतिहासिक नीरसता से रहित हैं और काव्यगत सरसता आप्लावित हैं । युद्धकांड में अनेक प्रसंग योद्धाओं का सजीव चित्र उपस्थित करते हैं । शस्त्रों की झंकार को कर्ण- गोचर करने वाले ध्वन्यात्मक शब्दों का प्रयोग कवि ने अनेक स्थलों पर किया है । कवि की कल्पना के चमत्कार को प्रदर्शित करने वाले भी अनेक स्थल हैं । म जन्माभिषेक के समय बजने वाले अनेक वाद्य यन्त्रों की ध्वनि, निम्नलिखित उद्धरण में सुनाई देती है अप्फालिउ ६९ पडिस णवणारंभ तूर, तिभुषण भवण पूरु । डुमु दुमु वुमंत दुंदुहि व मालु, घुम घुमु घुमंत घुम्मुक्क तालु । कि कि करंति सिक्किरि णिणाउ, सिमि सिमि सिमंत झल्लरि णिहाउ । सलंत कंसाल हुयल, गुं गुंजमाण जंतु महलु | कणंतु कमइ कोसु, डम डम डमंत उमद वणि घोसु । दों दों समज बणदु, श्री त्रां परिछितउ भं भंत सल सल कण कण दों टटि विलुउंडत उक्क, भंभुखंडत टं टं हरिकंसुभावेण हरि विक्कम सारवलेण रणयं । वीसइ देव बार तक ताली तरल तमाल छष्णयं । लवलि लवंग लउय जंबु वर अंव कवित्य रिट्ठयं । सम्मलि सरल साल सिणि सल्लइ सीस वस मिस मिट्ठयं । चंपय चूय चार रवि चंदण वंदण वंद सुंदरं । पत्तल वहल सीयल काय लया हर मय मनोहरं । मंथर मलय मारुयंदोलियं पायव पडिव पुप्कयं । पुप्फ प्फोथ सकल भसलावलि णाविय पहिय गुप्फयं । केसरि जहर पहर खर दारिय करि सिर मोतिय पंति कंति धवलीकय सयल दिसा वहंतियं । खोल्ल जलोल्ल तल्ल लोलंत लोल कोल उल भीसणं । वायस कंक सेण सिव जंववधूय विमुक्क णीसणं । माय गय मय जलोह कद्दम संखुभ्रांत वणयरं । फुरिय फणिद फार फणि मणि गण किरण करालियंवरं । गिरि गण तुंग सिंग आलिंगिय चंदाइच्च मंडलं । तह भयावणे वणे दोसइ णिम्मल सीयलं जलं । लित्त मोत्तियं । डुकसद्दु । ठक्क । ८. ९. एक वन और सलिलाव कमल सर का सरस और मधुर पदावलि युक्त वर्णन देखिये
SR No.006235
Book TitleApbhramsa Sahitya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHarivansh Kochad
PublisherBhartiya Sahitya Mandir
Publication Year
Total Pages456
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size33 MB
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