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________________ अपभ्रंश-साहित्य ग्रंथ का प्रारम्भ कवि ने विषय की महत्ता और अपनी अल्पज्ञेता का प्रदर्शन करते हुए किया है। अपनी अल्पज्ञता और असमर्थता के कारण चिन्तातुर कवि को सरस्वती से प्रोत्साहन मिलता है-- चितवइ सयंभु काई करमि हरिवंसम्हण, के सरमि। गुरुवयण तरंडउ लद्धणवि जम्महो विण जोइउ को वि कवि । गउ पाइउ बाहत्तरि कलाउ एक्कु विण गंथु परिमोक्कलउ । तहि अवसरि सरसइ धीरवई करि कम्बु दिण्ण मेइ विमलमइ । रि० च० १. २. अर्थात् जब हरिवंश-महानद को पार करने में कवि चिन्तातुर थान मैंने गुरुवचननौका प्राप्त की, म जन्म से किसी कवि के दर्शन किये, न ७२ कलाओं का ज्ञान प्राप्त किया और न किसी भी ग्रंथ का चिन्तन किया-तब सरस्वती ने उसे धैर्य बंधाया और कहा-हे कवि ! काव्य करो, मैंने तुम्हें विमल मति दी। ____ इसी प्रसंग में स्वयंभू ने अपने पूर्ववर्ती कवियों और आलंकारिकों का आभार प्रदर्शन किया... इंवेण समप्पिर वायरणु, रसु भरहें वासें वित्थरण। पिगलेण छंद पय पत्थार, मम्मह वंडिणिहि अलंकार। बाग समपिउ घणघणलं, तें अक्सर उंबरु अप्पणउ। पउनुहेण समप्पिय पर्वडिय। पारंभिव पुणु हरिवंस कहा ससमय पर समय वियार-सहा ॥ रि० ० १.२ यादव कांड की १३ संधियों में कवि ने कण जन्म, कृष्ण बाल लीला, कृष्ण विवाह संबन्धी कथाएं, प्रद्युम्न आदि की कथाएँ और नेमि जन्म कथा दी है। इन संधियों में नारद कलह प्रिय साधु के रूप में हमारे सामने आता है। कुरु कांड की १९ संधियों में कौरव पांडवों के जन्म, बाल्य काल, शिक्षा आदि का वर्णन, उनके परस्पर वैमनस्य, युधिष्ठिर का जूआ खेलना और उसमें सब कुछ हार जाना, एवं पांडवों के बारह साल तक वनवास की कथा दी गई है। युद्ध कांड में कौरव पांडवों के युद्ध का सजीव वर्णन है, पांडवों की विजय और कौरवों की पराजय का चित्र कवि ने अंकित किया है। __ कवि ने कथा का आधार महाभारत और हरिवंश पुराण को ही रखा है किन्तु कहीं कहीं पर समयानुकूल परिवर्तन भी कर दिये हैं। उदाहरण के लिए द्रौपदी स्वयम्बर में मत्स्य वेध की प्रतिज्ञा के स्थान पर केवल धनुष चढ़ाने की प्रतिज्ञा का कवि ने उल्लेख किया है। इस परिवर्तन में जैनधर्म की अहिंसा का प्रभाव दृष्टिगोचर होता है। १. डा० रामसिंह तोमर--प्राकृत-अपभ्रंश-साहित्य और इसका हिन्दी-साहित्य पर प्रभाव
SR No.006235
Book TitleApbhramsa Sahitya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHarivansh Kochad
PublisherBhartiya Sahitya Mandir
Publication Year
Total Pages456
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size33 MB
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