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________________ अपभ्रंश साहित्य चित्त निवेश्य परिकल्पित सर्व योगान् रूपोच्चयेन विधिना विहिता कृशांगी। __अभिज्ञान शाकुन्तल २. १० किन्तु कालिदास की शकुन्तला विधाता का मानसिक चित्र है और स्वयंभू की सीता का निर्माण देव ने तीनों लोकों की उत्कृष्ट वस्तुओं को लेकर किया। यह सीता का चित्र लौकिक ही है अतएव मानसिक चित्र की समता नहीं कर सकता। प्रकृति वर्णन-कवि ने अनेक प्राकृतिक दृश्यों का वर्णन किया है जिसका निर्देश ऊपर किया जा चुका है । प्रकृति वर्णन की एक परिपाटी सी चल पड़ी थी और प्रकृतिवर्णन महाकाव्य का एक अंग बन गया था। ... स्वयंभू का प्रकृति वर्णन प्राचीन परंपरा को लिये हुए ह । इसका निर्देश ऊपर पावस वर्णन के प्रसंग में किया जा चुका है। कवि ने अलंकारों के प्रयोग के लिए भी प्रकृति का वर्णन किया है _णव-फल-परिपक्काणणे' काणणे । कुसुमिय साहारए साहारए। इसी प्रकार मगध देश का वर्णन करता हुआ कवि कहता है जहिं सुय-पतिउ सुपरिट्टिआउ । णं वणसिरि-मरगय-कंठियाउ । जहिं उच्छु-वणइं पवणाहयाइं । कंपति व पीलणभय गया। जहिं गंदण-वणइं मणोहराई । णच्वंति व चल-पल्लव-कराई। नहिं फाडिय-वयणइं दाडिमाइं । नज्जति ताई नं कइ-मुहाई। जहिं महुयर-पंतिउ सुदराउ । केयइ-केसर-रय-धूसराउ। जहिं दक्खा-मंडव परियलंति । पुणु पंथिय रस-सलिलई पियन्ति ।। प० च० १.४ अर्थात् जहाँ वृक्षों पर बैठी शुक-पंक्ति वनधी के कंठ में मरकतमाला के समान प्रतीत होती है । जहां पवन से प्रेरित इक्षु वन काटे जाने के भय से भीत हो मानों काप रहे हैं । जहाँ चंचल पल्लव रूपी करों वाले मनोहर नन्दन धन मानों नाच रहे हैं। प्रस्फुटवदन वाले दाडिम फल बन्दर के मुखों के समान दिखाई देते हैं। जहां सुन्दर भ्रमरपंक्ति केतकी केसर रज से धूसरित है। जहाँ द्राक्षामंडप के हिलने से पथिक मधुर रस रूपी सलिल का पान कर रहे हैं। ___ इस प्रकार के वर्णन में अलंकार प्रियता के साथ-साथ कवि की सूक्ष्म निरीक्षण शक्ति और परंपरा से ऊपर उठ कर लोक दर्शन की भावना भी अभिव्यक्त हो रही है। प्रकृति का उद्दीपन रूप में वर्णन न कर आलंबनात्मक रूप में कवि ने वर्णन किया है। समुद्र का वर्णन करते हुए कवि कहता हैपत्ता-मण-गमणेहि गयणि पयर्केहि, लक्खिड-लवण समुद्द किह । १. आमेर शास्त्र भंगर जयपुर की हस्त लिखित प्रति में संयुक्त शब्दों के बीच मेंश' नहीं । अर्थ सुविधा के लिये यत्र तत्र लगा दिये गये हैं।
SR No.006235
Book TitleApbhramsa Sahitya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHarivansh Kochad
PublisherBhartiya Sahitya Mandir
Publication Year
Total Pages456
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size33 MB
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