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________________ अपभ्रंश महाकाव्य प्रत्येक सन्धि अनेक कडवों से मिलकर बनती थी । प्रत्येक कडवक पज्झटिका आदि अनेक छन्दों से मिलकर बनता था जिसकी समाप्ति घत्ता से होती थी। सन्धि में कितने कडवक हों ऐसा कोई निश्चित नियम न था। सन्धि का आरम्भ ध्रुवक के रूप में पत्ता से होता था जिसमें संधि का सार संक्षेप से अभिव्यक्त होता था। कुछ महाकाव्य कांडों में विभक्त किये गये हैं। प्रत्येक कांड अनेक संधियों से मिल कर बनता है। कांडों में विभाजन की यह शैली वाल्मीकि रामायण में पाई जाती है और हिंदी में भी बनी दिखाई देती है यहां तक कि रामचरित मानस को भी सोपानों के साथ ही कांडों में विभाजित करके देखा जाता है। साहित्य दर्पणकार के कथन से ऐसा प्रतीत होता है कि उस समय अपभ्रंश महाकाव्यों में संस्कृत और प्राकृत से स्वतन्त्र छंदों का प्रयोग भी प्रचुरता से आरम्भ हो गया था। ____ काव्य की रचना यदि किसी हृद्गत भाव की अभिव्यक्ति के लिए हो तो उसकी भावानुभूति में स्वाभाविकता और सुन्दरता का समावेश हो ही जाता है। काव्यरचना यदि प्रचार दृष्टि से हो तो उसमें वह तीव्रता और सुन्दरता स्पष्टतया अंकित नहीं हो सकती । कलाकार-कलाप्रदर्शन, कला प्रचार, यश की प्राप्ति आदि भाव निरपेक्ष होकर, यदि हृदय की तीव्रानुभूति को तीव्रता से अभिव्यक्त करना ही अपना लक्ष्य समझता है तो उसकी कला में एक विशेष सौंदर्य दिखाई देता है। जैनाचार्यों के ग्रंथों में प्रचार भावना के कारण काव्यत्व कुछ दब सा गया है और काव्यत्व की मात्रा की अपेक्षा कथाकी मात्रा कुछ अधिक हो गई है। जैनाचार्यों ने प्रचार दृष्टि से जिन ग्रंथों की रचना की वे अधिकतर सर्वसाधारण अशिक्षित वर्ग के लिएथे। कुछ ग्रंथ शिक्षित वर्ग को अपना मत स्वीकार कराने की दृष्टि से भी रचे गये किन्तु अधिकता प्रथम प्रकार के ग्रंथों की ही है। प्रबन्ध कव्यों का भेद करते हुए आचार्य रामचन्द्र शुक्ल ने विषय की दृष्टि से तीन प्रकार के प्रबन्ध काव्य बताये-वीर गाथात्मक, प्रेम गाथात्मक और जीवन गाथात्मक । उन्होंने प्रथम में पृथ्वीराज रासो आदि, द्वितीय में जायसी की पद्मावत आदि प्रेमाख्यानक काव्य, और तृतीय में रामचरित मानस आदि काव्यों का अन्तर्भाव किया है । अपभ्रंश में हमें चरिउ रूप में अनेक जीवनगाथात्मक काव्य मिलते हैं। इनमें किसी तीर्थकर या महापुरुष का चरित्रवर्णित है। इन काव्यों में हमें जीवन के उन विविध पक्षों का वह विस्तार दृष्टिगोचर नहीं होता जो तुलसीदास ने राम के जीवन में अंकित किया है। अपभ्रंश के चरितकाव्यों में कथा की मात्रा अधिक स्पष्ट है। अनेक चरित काव्य तो पद्यबद्ध उपन्यास कहे जा सकते हैं। आगे चलकर हिन्दी में जिस उपन्यास साहित्य का विकास हुआ उसका आभास इन चरित काव्यों में दिखाई पड़ता है। भिन्न-भिन्न चरितकाव्यों के कथानक को पढ़ कर यह कथन संभवतः अधिक स्पष्ट हो सके । प्राचीन काल में हस्तलिखित पुस्तकों की असुविधा और कमी के कारण उस समय की प्रायः सभी रचनाएं इस दृष्टि से की जाती थीं कि वे लोगों की स्मृति
SR No.006235
Book TitleApbhramsa Sahitya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHarivansh Kochad
PublisherBhartiya Sahitya Mandir
Publication Year
Total Pages456
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size33 MB
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