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________________ अपभ्रंश साहित्य की पृष्ठभूमि २७ उनके राज्य को हस्तगत करना चाहता था। वह केवल यही चाहता था कि अन्य राजा उसके चक्रवर्तित्व को स्वीकार कर लें। इसी कारण इन भिन्न-भिन्न राज्यों में परस्पर प्रतिस्पर्धा और संघर्ष चलता रहता था। किन्तु इनमें से कोई भी किसी एक बड़ी शक्ति के आधीन रह कर काम करने के लिए तैयार न था । इन में से अनेक राज्य इतने विस्तृत थे कि यदि वे सहज ही संगठित हो पाते तो भारतीय स्वतन्त्रता को बनाये रख सकते थे किन्तु तो भी अन्त में तुर्कों और पठानों के आगे झुक गये। बारहवीं शताब्दी में अजमेर के चौहानों में से बीसलदेव और पृथ्वीराज ने तुर्कों को दबाने का प्रयत्न कर भारत की प्रतिष्ठा को स्थिर रखने का साहस किया। तेरहवीं शताब्दी से हिन्दुओं की राजशक्ति पूर्ण रूप से अस्त-व्यस्त एवं छिन्नभिन्न हो गई थी। यदि इस काल में भारतीय राजाओं में राजनीतिक जागरूकता रहती-वे सब अपने आप को एक राष्ट्र और एक ही आर्य धर्म के सदस्य समझते तो वे मिल कर विदेशी प्रभाव और आक्रमण का मुकाबला कर सकते। इस काल की . भारतीय सभ्यता भी पहले सी सजीव और सप्राण न रही जो शकों और हूणों की तरह तुर्कों को भी अपने ही रंग में रंग लेती। क्योंकि इस समय में जाति-पांति के संकीर्ण क्षेत्र में हिन्दू जाति भली भाँति विभक्त हो गई थी। खान-पान में भी संकीर्णता आगई थी। चित्त की उदारता और भ्रातृत्व का व्यापक दृष्टिकोण जाता रहा । धार्मिक अवस्था उपर्युक्त विवेचन से इतना अवगत हो गया कि इस अपभ्रंश काल में बौद्ध, जैन और ब्राह्मण धर्म के साथ ही इस्लाम धर्म का भी प्रचार हो गया । फलतः उक्त धर्मावलम्बियों की भांति इस धर्म के भी कवियों ने अपभ्रश में रचना की । अतएव इन सभी धर्मों की स्थिति का सामान्य परिचय यहां अनावश्यक न होगा। होते-होते बौद्धधर्म हर्षवर्धन के समय में ही यहां तक अवनत हो गया था कि उस काल के चीनी यात्री युवानच्वाङ् ने सिन्धु प्रान्त के बौद्धों के विषय में स्पष्टतया कहा कि वहां के भिक्खु-भिक्खुनी निठल्ले, कर्त्तव्य-विमुख और पतित हो गये थे। पहिले बौद्धधर्म हीनयान और महायान, इन दो विभागों में विभक्त हुआ था। कालान्तर में महायान भी अनेक उपयानों में विभक्त हुआ। महायान के शून्यवाद और विज्ञानवाद जनता को अधिक प्रभावित न कर सके। इसमें महासुखवाद के संमिश्रण से वज्रयान का आविर्भाव हुआ। जिसमें भिन्न-भिन्न प्रवृत्ति वाले लोगों के लिये भिन्नभिन्न साधन थे—योग, देवपूजा, मन्त्र, सिद्धि, विषय-भोग इत्य दि। वज्रयान में से ही सहजयान का भी आविर्भाव हुआ । इस ने वज्रयान के विभिन्न प्रतीकों की दूसरे रूप में व्याख्या की । महामुद्रा, मंत्र साधनादि बाह्य साधनाओं की अपेक्षा यौगिक और मानसिक शक्तियों के विकास पर बल दिया। यद्यपि बज्रयान और सहजयान दोनों का लक्ष्य एक ही था-'महासुख' या पूर्ण आनन्द की प्राप्ति तथापि दोनों के दृष्टिकोण में भेद था। ___सहजयान का लक्ष्य था कि सहज मानव की जो आवश्यकताएँ हैं, उन्हें
SR No.006235
Book TitleApbhramsa Sahitya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHarivansh Kochad
PublisherBhartiya Sahitya Mandir
Publication Year
Total Pages456
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size33 MB
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