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________________ अपभ्रंश-साहित्य अरबों के भारत में प्रवेश करने से हिन्दु और अरब संस्कृतियों का मेल हुआ। भारत से अनेक हिन्दु विद्वान् बगदाद गये और अनेक अरब विद्यार्थी पढ़ने के लिए भारत आये। संस्कृत के दर्शन, वैद्यक, ज्योतिष, इतिहास, काव्य आदि के अनेक ग्रंथों का अरबी में अनुवाद हुआ । भारत से गणित आदि का ज्ञान अरब लोग ही योरुप में ले गये। पंचतन्त्र आदि की कहानियाँ भी उन्हीं के द्वारा विदेशों में पहुंची। नवीं शताब्दी में कन्नौज पर प्रतिहारों का आधिपत्य हुआ। कारण यह था कि हर्ष के साम्राज्य के छिन्न-भिन्न होने पर उत्तर भारत अनेक राज्यखंडों में विभक्त हो गया था। इनमें से पूर्व में बिहार-बंगाल के पाल, पश्चिम में गुजरात-मालवा के प्रतिहार और दक्षिण में मान्यखेट के राष्ट्रकूट मुख्य थे। ये तीनों कन्नौज को हस्तगत करना चाहते थे किन्तु नवीं शताब्दी में भोज और उसके वंशजों ने कन्नौज पर आधिपत्य प्राप्त किया। इनके शासन में कन्नौज भारत के सबसे प्रतापी राजाओं की राजधानी बन गया। इन सब शक्तियों और राष्ट्रों में से प्रतिहार और राष्ट्रकूट ही भौगोलिक स्थिति के कारण भारत में बाह्य आक्रमण को रोकने में समर्थ थे। इनके आधीन अनेक छोटे-छोटे राजा थे। उनमें प्रायः परस्पर युद्ध भी होते र ते थे। दसवीं शताब्दी में छोटे-छोटे राज्य आपस में लड़ते रहे, इससे उनमें क्षत्रियोचित वीरता और पराक्रम की भावना सदैव प्रदीप्त रही। राज्य को उन्नत रखने की प्रवृत्ति भी इससे बनी रही। कभी-कभी एक राज्य दूसरे को पराजित करने के लिए विदेशियों की सहायता भी ले लेते थे। अपने देश या प्रान्त की भावना अधिक उबुद्ध थी किन्तु इन राज्यों में सच्ची राष्ट्रियता की लगन न थी । अब भी राजा ईश्वर का प्रतिनिधि माना जाता था अतः राजा के प्रति आदर-भाव था। राष्ट्र की भावना जागृत न हो पाई थी। ग्यारहवीं शताब्दी के प्रारम्भ में महमूद गजनवी का आक्रमण हुअा । मालवा का राजा भोज भारत में पर्याप्त प्रसिद्ध है। चेदि का राजा कर्ण भी ११ वीं शताब्दी के प्रारम्भ में बहुत प्रतापी राजा था। इस काल में प्रतिहार शक्ति बहुत कुछ क्षीण हो गई थी और उसके क्षीण होने पर उसके आधीन रहने वाले चन्देल ( कालिंजर), कलचुरी (त्रिपुरी) तथा चौहान (सांभर, अजमेर) स्वतन्त्र होने लगे। ये सब स्वतन्त्र तो हो गये किन्तु किसी में बाह्य आक्रमण को रोकने की शक्ति न थी। इसी शताब्दी में उत्तर भारत में पालों, गहड़वारों, चालुक्यों, चंदेलों और चौहानों के अतिरिक्त गुर्जर-सौलंकी और मालवा के परमार भी अपने स्वतन्त्र राज्य स्थापित कर गये। ११वी-१२वीं शताब्दी में उत्तरी भारत की शक्ति और भी अधिक छिन्न-भिन्न हो गई थी। उपरिलिखित सात राज्यों के शासक चक्रवर्ती-रूप प्राप्त करने की चेष्टा में लगे रहते थे। चक्रवर्ती राजा दूसरे राजाओं के ऊपर शासन नहीं करना चाहता था, न १. जयचन्द्र विद्यालंकार-इतिहास-प्रवेश, सरस्वती प्रकाशन मंदिर, इलाहाबाद, सन् १९४१, पृष्ठ १७८
SR No.006235
Book TitleApbhramsa Sahitya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHarivansh Kochad
PublisherBhartiya Sahitya Mandir
Publication Year
Total Pages456
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size33 MB
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