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अपभ्रंश-साहित्य सो कम्म वियारिवि सिव बहुधारिवि भवसायरु लीलई तरइ ॥१.३९
ग्रंथ में कवित्व की प्रधानता नहीं । काव्यमय वर्णनों का प्रायः अभाव है । वर्णन सामान्य कोटि के हैं । एक नमूना देखिये
इह जंव दीउ दीवहं पहाणु, गिरि दरि सरि सरवर सिरि णिहाणु। तहि मज्झि सुदंसण णाम मेरू, णं विहिणा किउ जय मज्झि मेरु । तहो सेल्लहु दाहिणी दिसि विचित्तु, सिरि संकुल णामें भरहखेत्तु । तहो मज्झि मगहु णामेण देसु, तहो वण्णहु पारं गउ ण सेसु । इत्यादि १.८ .
वर्णनों का चलता करने का प्रयत्न किया गया है। मगध देश का वर्णन शेष भी न कर सका अतः कवि ने भी चुप रहना उचित समझा।