SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 436
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ४१८ ... अपभ्रंश साहित्य अम्हे थोवा रिउ बहुम कायर एम्ब भणन्ति । मुद्धि णिहालहि गयणयलु कइ जण जोण्ह करन्ति ॥ (प्राकृत व्याकरण, ८.४.३७६) जे निअहिं न पर दोस । गणिहिं जि पयडिअ तोस । ते जगि महाणुभावा । विरला सरल सहावा ॥ परगुण गहणु स दोस पयासण । महु महुरक्खरहि अमिउ भासण । उवयारिण पडिकिओ वेरिअणहं, इअ पद्धडी मणोहर सुअणहं ॥ (छन्दोऽनुशासन) जे परदार-परम्महा ते वुच्चहिं नरसीह । जे परिरंभहि पर रमणि ताहं फसिज्जइ लीह ॥ (कुमारपाल प्रतिबोध, पृष्ठ १५५,) जइवि हु सूरु सुरुवु विअक्खणु तहवि न सेवइ लच्छि पइक्खणु । पुरिस गणागुण मुणण परम्मुह महिलह बद्धि पयंपहिं जं बुह ॥ (वही, पृ० ३३१) जा मति पच्छइ संपज्जइ सा मति पहिली होइ। मंज भणइ मुणालवइ विघन न वेढइ कोइ॥ . (प्रबन्ध चिन्तामणि पृ० २४) कसु करु रे पुत्त कलत्त धी कसु करु रे करसण वाडी। एकला आइवो एकला जाइवो हाथ पग बेहु झाडी ॥ (वही, पृ० ५१) कुमारपाल ! मन चिंत करि चिंतिहि किंपि न होइ। जिणि तुहु रज्ज सप्मप्पिर चिंत करेसइ सोइ ॥ (प्रबन्ध कोश, पृ० ५१) उवयारह उवयारडउ सव्वु लोउ करेइ । अवगुणि कियइ जु गुण करइ विरलउ जणइ जणेइ॥ (वही, पृ० ८) सुरअरु सुरही परसमणि, णहि वीरेस समाण । ओ वक्कल अरु कठिण तणु, ओ पसु ओ पासाण॥ (प्राकृत पैगल पृ० १३९)
SR No.006235
Book TitleApbhramsa Sahitya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHarivansh Kochad
PublisherBhartiya Sahitya Mandir
Publication Year
Total Pages456
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size33 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy