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________________ ३८० अपभ्रंश- साहित्य श्रीजा दिवसह णो दधि न-उपगरी ।" इत्यादि । १५ वीं शताब्दी की एक अप्रकाशित कृति “पृथ्वीचन्द्र चरित्र" उपलब्ध हुई है ।" माणिक्य चन्द्र सूरि ने इसकी रचना वि० सं० १४७८ में की थी । ग्रन्थ का दूसरा नाम वाग्विलास है । इसमें वाग्विलास रूप चमत्कार प्रधान वर्णनों के कारण संभवतः इस का यह नाम भी रचयिता ने रखा हो । उदाहरण “विस्तर वर्षाकाल, जो पंथी तणउ काल, नाठउ दुकाल । जिणिइ वर्षाकालि मधुर ध्वनि मेह गाइ, दुर्भिक्ष तथा भय भाजइ, जाणे सुभिक्ष भूपति आवतां जय ढक्का बाजइ । चिहुं दिशि वीज झलहलइ, पंथी घर भणी पुलइ । विपरीत आकाश, चन्द्रसूर्य परियास । राति अंधरी, लवइं तिमिरि । उत्तर नऊ उनयण, छायउ गयण । दिसि घोर, नाचई मोर । सधर वरसइ धाराधर । पाणी तथा प्रवाह खलहलइ, वाड़ी ऊपर वेला वलइ । चीखलि चालतां सकट स्खलई, लोक तणा मन धर्म ऊपरि वलई । नदी महा पूरि आवई, पृथ्वी पीठ प्लावई । नना किसलय गहगहई, वल्ली वितान लहलहई ।.... इत्यादि । 91 पतन भण्डार की ग्रन्थ सूची में भी 'उक्ति व्यक्ति विवृति" नामक ग्रन्थ में कुछ गद्य मिलता है । सम्भवतः यह ग्रन्थ दामोदर की “उक्ति व्यक्ति" की व्याख्या है । उक्त व्यक्ति का लक्ष्य बताया गया है कि "उक्ति व्यक्ति बुद्ध्वा बालैरपि संस्कृतं क्रियते ।" इससे प्रतीत होता है कि उक्ति व्यक्ति बच्चों को संस्कृत सिखाने के लिए लिखी गई थी । उक्ति व्यक्ति विवृति में लेखक ने संस्कृत पदों का अर्थ अपभ्रंश भाषा में भी दिया है । प्रारम्भिक मंगलाचरण में लेखक कहता है— सर्वविदे | नत्वा हेरम्बमममितद्युतिं । गणानां उक्ति व्यक्तौ विधास्यामो विवृति बाल लालिकां ॥१॥ उक्तेर्भाषितस्य व्यक्ति प्रकटीकरणं विधास्यामः । अपभ्रंश भाषाछन्नां संस्कृत भाषां प्रकाशयिष्याम इत्यर्थः । अपभ्रंस (श) भाषया लोको वदति यथा । धर्म्म आथि धर्म्मा कीज (इ) । दुह गावि दुधु गुआल । यजमान कापडिआ । गंगाए धर्म्मा हो पापु जा । पृथ्वी वरति । मेहं वरिस | आंखि देख । नेहाल | आंखि देखत आछ । जीभें चाख । काने सुण । बोलं बोल | वाचा वदति ॥१०॥ बोलं बोलती । पायं जा पादेन याति । मूतत आछ मूत्रयन्नास्ते ॥११॥ भोजन कर । देवदल कट करिह देवदत्तः कटं करिष्यति । हउं पर्व्वतउ टालउं अहं पर्वतमपि टालयामि सर्वहि उपकारिआ होउ सवषामुपकारी भूयात् ॥ १४ ॥ कर आछ धर्म कुर्वन्नास्ते ॥ १५ ॥ देवता दर्शन कर देउ देख ॥ १६ ॥ वेद पढव वेद : नमः नायकं i १. अगरचन्द नाहटा -- कतिपय वर्णनात्मक राजस्थानी गद्य-ग्रन्थ, राजस्थान भारती. भाग ३, अंक ३-४, पृ० ३९-४१ । २. पत्तन भंडार की ग्रंथ सूची भाग १, पृ० १२८ ।
SR No.006235
Book TitleApbhramsa Sahitya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHarivansh Kochad
PublisherBhartiya Sahitya Mandir
Publication Year
Total Pages456
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size33 MB
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