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भपभ्रंश-गद्य
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एक दूसरा उदाहरण देखिये :--
"लोअ छत्तिस, अवरु परिवार रज्ज भोग परिहरिअ, वर तुरंग परिजन विमुक्किअ, जननि पान पन्नविअ, जन्मभूमि को मोह छोड्डिअ, धनि छोड्डिअ......" ___ लोगों को छोड़कर, अन्य परिवार राज्य भोग छोड़कर, अच्छे-अच्छे घोड़े परिजनादि त्याग कर, जननी के चरणों में प्रणाम कर, जन्मभूमि का मोह संवरण कर, स्त्री को छोड़ कर ... (गणेश राय का पुत्र चल पड़ा)। __ इस गद्य खंड की भाषा समास रहित और अपेक्षाकृत सरल है ।
श्री अगरचन्द नाहटा ने १४वीं शताब्दी की 'तत्व विचार (तत्त वियार)नामक एक भप्रकाशित कृति का राजस्थान भारती में निर्देश किया है।
इसमें श्रावक के १२ व्रत, जीवादि नौ पदार्थ, देव गुरु धर्म, त्रिषष्टिशलाका पुरुष आदि का वर्णन है । एक उदाहरण देखिये
एउ संसार असार । खण भंगरु, अणाइ चउ गईउ । अणोरु अपार संसारु । अणाइ जीवु। अणेग अणादि कर्म संयोगि सुभासुभि कर्म अचेष्टित परि वे णिढिया जीव पुणु नरक गति । पुणु तियंच गति । पुणु मनुष्य गति । पुण देव गति । ईम परि परि भमत्ता जीव जाति कुलादि गुण संपूर्ण दुर्लभु माणुखउ जनमु । सर्वही भव मद्धि महा प्रधानु । मन चितितार्थ संपादकु । कथमपि देव तणइ योगि पावियइ । ततः अति दुर्लभ परमेश्वर सर्वज्ञोक्तु धर्म । इत्यादि ___ श्री नाहटाजी ने इसी समय के आसपास की "धनपाल कथा" नामक एक अप्रकाशित कृति का भी निर्देश किया है। इसमें "तिलक-मंजरी" के रचयिता प्रसिद्ध विद्वान् धनपाल के जीवन की एक कथा का उल्लेख है । इनके जीवन में किस प्रकार एक छोटी सी घटना से परिवर्तन हुआ और किस प्रकार उनकी तिलक मंजरी के अग्निसात् हो जाने पर पुनः वह लिखी गई, इसका संक्षेप में तत्कालीन प्रचलित लोक-भाषा में वर्णन किया गया है । इसके गद्य का नमूना देखिये__ "उज्जयनी नाम नगरी। तहिंठे भोजदेव राजा। तीयहितणइ पंचह सयह पंडितह मांहि मुख्यु धनपाल नामि पंडितु। तीहि तणइ घरि अन्यदा कदाचित साधु विहरण निमित्तु पइठा। पंडितह णी भार्या त्रीजा दिवसह णी दधि लेउ उठी। ........तिया भणियउ। केता दिवसह णी दधि। तिणि ब्राह्मणी भणियउं, त्रीजा दिवसह णी दधि । महामुनिहि भणियउं श्रीजा दिवसह णी दधि न-उपगरी । वतिया ठाला नीसरता पंडिति धनपालि गवाक्षि उपविष्टि हूंतइ दीठा। विणवियउ, किसइ कारणि ठाला नीसरिया, पंडियाणी दधि दियइ छइ ! तदनंतर गवाक्ष हूंतउ ऊठिउ, महामुनि समीपि आवियउं। महामुनि बतिया! भगवंतहु ! किसइ कारणि दधि न विहरू ? महामुनिहि भणियउ ।
१. वही, पृ० २२। २. अगर चन्द नाहटा--राजस्थान भारती, वर्ष ३, अंक ३-४, पृ० ११८-१२० । ३. अगर चन्द नाहटा--राजस्थान भारती, वर्ष ३, अंक २, पृ. ९३-९६ ।