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अपभ्रंश-साहित्य कृति में धार्मिक प्रवचनों की प्रधानता है । उच्च कल्पना, अलंकार, चमत्कार आदि का अभाव है।
कवि की कविता का उदाहरण निम्नलिखित उद्धरण में देखा जा सकता है-- कवि आहवमल्ल की रानी का वर्णन करता है-- तहो पट्ट महाएवी पसिद्ध ईसरदे पणयणि पणय विद्ध । णिहिलंतेउर मज्झए पहाण णिय पइ मण पेसण सावहाण। सज्जण मण कप्प महीय साह कंकण केऊरंकिय सुवाह । छण ससि परिसर संपुण्ण वयण मुक्क मल कमल दल सरल णयण। आसा सिंधुर गइ गमण लील बंदियण मणासा दाण सील । परिवार भार धर धरण सत्त मोयई अंतरदल ललिय गत्त ।
अहमल्ल राय पय भत्ति जुत्त अवगमिय णिहिल विण्णाण सुत्त । गंगा तरंग कल्लोल माल समकित्ति भरिय ककुहंतराल । कलयंठि कंठ कल महुर वाणि गुण गरुव रयण उप्पत्ति खाणि ।
अरि राय विसह संकरहो सिट्ठ सोहग लग्ग गोरि व्द दिट्ठ।' वर्णन में कोई विशेषता नहीं। कवि ने रानी का शृगारिक वर्णन न कर उसके सद्गुणों की ही प्रशंसा की है। अपनी धार्मिक भावना के अनुकूल उसकी पार्वती से उपमा दी है।
मन्त्रि-पत्नी का निम्नलिखित भुजंगप्रयात छन्दों में वर्णन करता हुआ कवि कहता है
"पिया तस्स सल्लक्खणा लक्खणड्ढा । गुरूणं पए भक्ति काउं वियड्ढा । स भत्तार-पायार विदाणुगामी । घरारंभ-वावार-संपुण्ण-कामी । सुहायार चारित्त-चीरंक-जुत्ता। सुचेयाण गंधोदएणं पवित्ता। स पासाय-कासार-सारा- मराली । किवा-दाण संतोसिया वंदिणाली। दया वल्लरी मेह-मक्कंबुधारा। सइत्तत्तणे सुद्ध-सीयप्पयारा। जहा चंद चूडानुगामी भवाणी। जहा सव्व वेइहिं सव्वंग वाणी ॥
इत्यादि इस वर्णन में भी धार्मिक भावना के अनुकूल शृगार का अभाव है । स्त्री के पतिभक्ति, चारित्र्य, दया आदि गुणों का ही कवि ने निर्देश किया है।
१. वही, पृ० १६४।
णिहिलंतेउर मज्झ-सारे अन्तःपुर में। छण ससि-पूर्ण चन्द्र विम्ब के समान मुख । मोइयं अंतर दल---केले के भीतरी दल के समान कोमल शरीर वाली।