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________________ अपभ्रंश और हिन्दी के पूर्वकाल में ये सब भिन्न-भिन्न अपभ्रंशों से प्रभावित हुई दिखाई देती हैं। उत्तरकाल का अपभ्रंश साहित्य भी इन प्रान्तीय भाषाओं से प्रभावित होता रहा । इस प्रकार प्रान्तीय भाषाओं के प्रारम्भिक रूप में और अपभ्रंश काल के उत्तर रूप में दोनों के साहित्य चिरकाल तक समानान्तर रूप से चलते रहे। आधुनिक भारतीय आर्यभाषा काल में आकर भाषाएँ संयोगात्मक से वियोगात्मक या विश्लेषात्मक हो गई थी। इस काल की सभी भाषाएँ अपभ्रंश से प्रभावित हैं । इस अध्याय में हिन्दी को दृष्टि में रख कर उसका अपभ्रंश से भेद निर्दिष्ट किया गया है। हिन्दी में ध्वनियाँ प्रायः वही हैं जो मध्यकालीन भारतीय आर्यभाषा काल में मिलती थीं। स्वरों में ऋ का प्रयोग संस्कृत के तत्सम शब्दों में मिलता है किन्तु इसका उच्चारण रि होता है। ऐ और ौ का उच्चारण संस्कृत के समान अइ, अउ न हो कर अए, (ऐसा) असो, (औरत) रूप में परिवर्तित हो गया है । अंग्रेजी के प्रभाव से फुटबॉल कॉलिज आदि शब्दों में व्यवहृत ऑ ध्वनि हिन्दी के पढ़े लिखे लोगों में प्रचलित हो गई है । व्यंजनों में श् और ष में भेद नहीं रहा । ष् का उच्चारण भी प्रायः श् के समान ही होता है । संयुक्ताक्षर ज्ञ का उच्चारण ग्य, दय, ग्य, ज्यँ आदि रूपों में स्थान भेद से भिन्न-भिन्न प्रकार से किया जाता । व्यंजनों में ड़ और ढ़ नई ध्वनियाँ हैं । इसी प्रकार अरबी और फारसी के प्रभाव से क् ख् ग् ज् झ् आदि ध्वनियों का भी विकास हुआ। इन का प्रयोग अरब और फारसी के तत्सम शब्दों में होता है किन्तु रूढ़िवादी इनका उच्चारण देशी ध्वनियों के समान क् ख् ग: क् प ही करते हैं। (यथा काग़ज़ के स्थान पर कागज)। अपभ्रश में शब्दों के बीच में व्यंजनों के लोप हो जाने से स्वरों की बहुलता स्पष्ट दृष्टिगोचर होने लग गई थी। इन स्वरों की बहुलता से स्वरों के संयोग से उत्पन्न संयुक्त ध्वनियाँ भी उस भाषा में उत्पन्न हो गई थीं। इसी के परिणामस्वरूप स्वरों का लोप भी होने लग गया था, जिसके अनेक उदाहरण मिलते हैं। आदि स्वर लोप के उदाहरण अपि= पि या वि, अरण्य --अरण्ण=रण्ण आदि शब्दों में दिखाई देते हैं। हिन्दी में इसके उदाहरण भीतर अभ्यंतर, भी-अपि, रु अरु आदि शब्दों में दिखाई देते हैं। आदि स्वर लोप के अतिरिक्त मध्यस्वर लोप और अन्त्य स्वर लोप भी हिन्दी के शब्दों में दिखाई देता है। चलना, कमरा आदि शब्दों का उच्चारण चलना, कमा रूप से और चल, घर, केवल आदि शब्दों का उच्चारण चल घर, केवल रूप से किया जाता है। यद्यपि लिखने में यह परिवर्तन नहीं दिखाया जाता।' मध्यकालीन भारतीय आर्यभाषा काल में व्यंजन-समीकरण अपनी चरमसीमा पर पहुँच गया था। अनुस्वारस्थान-वर्ती वर्ग का पंचम अक्षर ही अधिकतर संयुक्ताक्षर रूप में दिखाई देता है (पङ्क, चञ्चल इत्यादि)। हिन्दी में बहुधा वर्ग १. डा० धीरेन्द्र वर्मा-हिन्दी भाषा का इतिहास पृ० १४६.
SR No.006235
Book TitleApbhramsa Sahitya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHarivansh Kochad
PublisherBhartiya Sahitya Mandir
Publication Year
Total Pages456
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size33 MB
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