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________________ अपभ्रंश मुक्तक काव्य-२ ३१३ ने निर्देश किया है। उन्होंन इन के निम्नलिखित कविता ग्रन्थों को, जिन के भोटिया अनुवाद तन्जूर में मिलते हैं, मगही में लिखित बताया है १. कान्ह पाद गीतिका, २. महाढुण्डन मूल, ३. बसन्त तिलक, ४. असम्बन्ध दृष्टि, ५. वज्र गीति, ६. दोहा कोष । 'बौद्ध गान ओ दोहा' में इनका दोहा कोष जिस में बत्तीस दोहे हैं, संस्कृत टीका सहित छपा है। जालन्धर पाद और कृष्ण पाद दोनों सिद्धों की गणना शैव सिद्धों में भी की गई है। इससे इनके महत्व की सूचना मिलती है। कृष्णपा, आगम, वेद, पुराण और पंडितों की निन्दा करते हुए कहते हैं लोअह गब्ब समुब्बहइ, हउँ परमत्थ पवीण। कोडिअ यज्झे एक्कु जइ, होइ णिरंजण लीण ॥ आगम केअ पुराणे (ही), पण्डिअ माण वहन्ति । पवक सिरीफले अलिअ जिम बाहेरीअ भनन्ति ॥ (दोहा कोष) __ अर्थात् व्यर्थ ही मनुष्य गर्व में डूबा रहता है और समझता है कि मैं परमार्थ में प्रवीण हूँ। करोड़ों में से कोई एक निरंजन में लीन होता है। आगम, वेद, पुराणों से पण्डित अभिमानी बनते हैं, किन्तु वे पक्व श्रीफल के बाहर ही बाहर चक्कर काटते हुए भौर के समान आगमादि के बाह्यार्थ में ही उलझे रहते हैं। कण्हपा निम्नलिखित दोहों में मन को निश्चल कर सहज मार्गप्राप्ति का उपदेश देते हैं जइ पवण गमण दुआरे, दिढ तालाबि दिज्जइ । जइ तसु घोरान्धारें, मण दिवहो किज्जइ ॥ जिण रअण उअरें जइ, सो वरु अम्वर छुप्पइ। भणई काण्ह भव भज्जन्ते, गिधाणो वि सिज्मइ ॥ दोहों के अतिरिक्त अनेक राग रागनियों में भी कण्ह पा ने अपने सिद्धान्तों का प्रतिपादन किया है। देखिये निम्नलिखित पद में वह अपनी भावना को एक गान के रूप में अभिव्यक्त करता है राग--देशाख नगर बाहिरे रे डोम्बि तोहोरि कुडिआ। छोइ छोइ जाइसो बाह्मण नाडिआ॥ आलो डोम्बि तोए सर करिब म सांग । निधिण काहन कापालि जोइ लांग ॥ एक सो पटुमा चोषठी पाखुड़ी। तहि चड़ि नाच डोम्बी बापुड़ी ॥ ___ इनादि (चर्यापद, १०)
SR No.006235
Book TitleApbhramsa Sahitya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHarivansh Kochad
PublisherBhartiya Sahitya Mandir
Publication Year
Total Pages456
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size33 MB
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