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अपभ्रंश-साहित्य वज्रयान का अभिप्राय है वज्र अर्थात् शून्य के द्वारा निर्वाण प्राप्त करना। शून्य का वज्र नाम इसलिए पड़ा क्योंकि वह नित्य है, अच्छेद्य है, अदाह य है । धर्म गुरुओं के निर्वाण प्राप्ति के इस नए साधन से जनता वज्रयान की और आकृष्ट हुई किन्तु उसे स्वरूप ज्ञान के लिए किसी गुरु या वज्राचार्य की आवश्यकता हुई। परिणामस्वरूप वज्रयान में गुरु-महत्ता प्रतिष्ठित हुई।
इस प्रकार इन्द्रभृति के महासुख वाद संबन्धी सिद्धान्त की स्थापना हो जाने पर ऊँचे विचार वाले शिक्षित बौद्धों को निर्वाण का सिद्धान्त भले ही न्याय्य और सर्वोच्च प्रतीत हुआ हो किन्तु साधारण जनता को वज्रयान की यह विचारधारा अधिक आकर्षक हुई। वज्रयान में एक ओर बौद्ध-धर्म के उच्च से उच्च सिद्धान्तों का प्रतिपादन था और दूसरी ओर नीच से नीच अनैतिक कार्यों का समर्थन भी। इन्द्रभूति के अनुयायियों ने वज्रयान के प्रचार के लिए और जनता को वज्रयान से प्रभावित करने के लिए प्रचलित लोक भाषा में कविता की । जन साधारण की भाषा में कविता करके इन्होंने अपने विचारों को जनता के समझने योग्य तो बना दिया किन्तु इन्हें सदा इस बात का भय रहता था कि कहीं हमारे विरोधी इस आचार बाह्य कर्म-कलाप का विरोध कर जनता में हमारे प्रति घृणा का भाव न पैदा कर दें। अतएव ये अपनी कविता सब को सुनने का अवसर न देते थे । अधिकारी और सत्पात्र को ही ये लोग कवितायें सुनाते थे और इसीलिए इन्होंने ऐसी व्यर्थक भाषा का प्रयोग प्रारम्भ किया जो योगाचार और वज्रयान उभय पक्ष वालों के लिए उपयुक्त होती थी। इसी कारण इस भाषा को सन्ध्या भाषा कहा गया। भाषा की अस्पष्टता के कारण बिना टीका की सहायता के कहीं कहीं सिद्धों के पदों का समझना कठिन हो जाता है। अतएव रहस्य भावना का समावेश होने लगा । क्रमशः गुह्य समाज की परम्परा चल निकली।
वज्रयान का इतना प्रभाव बढ़ गया कि वज्रयान के प्रचारकों और उनकी पुस्तकों के नाम के आदि या अन्त में वज्र शब्द का प्रयोग बहुलता से होने लगा। वज्र गुरुओं ने अशिक्षित जनता के निर्वाण या परमसुख के लिये अनेक मुद्रा, मन्त्र, मंडल, पूजा, धारणी, स्तोत्र, स्तव आदि का साधन आवश्यक बतलाया। सिद्धों और वज्राचार्यों द्वारा प्रतिपादित सिद्धान्तों के पालन से ही अशिक्षित शिष्य या तो दिव्य शक्ति या सिद्धि या निर्वाण प्राप्त कर सकता है, ऐसा उनका दावा था। वज्रयान के जनता में फैलने का प्रमुख कारण यह था कि इसमें भिन्न-भिन्न स्तर और विचारधारा वाले लोगों के लिये अभीष्ट सब साधन वर्तमान थे-योग, देव पूजा, मन्त्र, सिद्धि, विषय भोग इत्यादि ।
बौद्धों के अनुसार संसार में २६ लोक हैं जो तीन विभागों में विभक्त ह-काम, रूप और अरूप । बोधिचित निर्वाण की प्राप्ति के लिए इन लोकों में प्रवेश करता है । काम और रूप लोकों को पार कर वह अरूप लोक में पहुँचता है । रूप लोक में सर्वोच्च शिखर पर अकनिष्ठ है वहां अमिताभ बुद्ध वास करते हैं। उससे भी ऊपर सर्वोच्चस्थान है सुमेरु शिखर । उस स्थान पर पहुँच कर बोधि चित्त अपने आप को शून्य में डुबा देता है और उसी में विलीन हो जाता है । बोधि चित्त में विज्ञान के अतिरिक्त कुछ अव