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________________ २९० अपभ्रंश-साहित्य काल स्वरूप कुलक यह जिनदत्त सूरि रचित ३२ पद्यों की कृति है। इसका दूसरा नाम उपदेश कुलक भी है। ___मंगलाचरण के अनन्तर लेखक ने विक्रम की १२वीं शताब्दी में किसी सुखनाशआपत्ति-का निर्देश किया है । इस आपत्ति में लोगों में धर्म के प्रति अनादर, मोह-निद्रा की प्रबलता और गुरु वचनों में अरुचि हो गई थी। आगे कृतिकार ने सुगरु का महत्व बताया है । सुगुरु-वचन-लग्न-मानव सोते हुए भी जागरूक रहते हैं । सुगुरु और कुगुरु का भेद बताते हुए कृतिकार दोनों को क्रमशः गोदुग्ध और अर्क दुग्ध के समान बताता है। कुगुरु धतूरे के फूल के समान होता है। सुगुरु-वाणी और जिन-वाणी में श्रद्धा का उपदेश दिया है । बंधुवर्ग में एकता का प्रतिपादन करते हुए, माता पिता के प्रति आदर-भावना का उपदेश देते हुए और सुगुरु प्राप्ति से यमभय के भी नष्ट हो जाने का निर्देश करते हुए कृति समाप्त होती है। इस कृति का विषय धर्मोपदेश है और इसका नाम कुलंक है । कुलक ऐसे पद्य समूह को कहते हैं जिसमें पांच या पांच से अधिक ऐसे पद्य हों जिनका परस्पर अन्वय और सम्बन्ध हो।' इस कृति में यद्यपि ३२ पद्यों का परस्पर अन्वय नहीं, विषय भी भिन्न है किन्तु सारी कृति एक ही धर्मतन्तु से अनुस्यूत होने के कारण सम्भवतः कुलक कही गई है। श्री अगरचन्द नाहटा का विचार है कि जिस रचना में किसी शास्त्रीय विषय की आवश्यक बातें संक्षेप में संकलित की गई हों या किसी व्यक्ति का संक्षिप्त परिचय दिया गया हो उसकी संज्ञा 'कुलक' या 'कुल' होती है। उन्होंने इस प्रकार के अनेक प्राकृत में लिखित कुलकों का भी निर्देश किया है। 'काल स्वरूप कुलक' के अतिरिक्त निम्नलिखित अपभ्रंश में लिखित कुलक कृतियों का निर्देश पत्तन भण्डार की ग्रंथ सूची में मिलता हैजिनेश्वर सूरि रचित भावना कुलक (वही, पृ० २४) नवकार फल कुलक (वही, पृ० ४४) मृगापुत्र कुलक (वही, पृ० १२०) पश्चात्ताप कुलक (वही, पृ० २६३) जिन प्रभ रचित सुभाषित कुलक (वही, पृ० २६४) गौतम चरित्र कुलक (वही, पृ० २६६) कृतिकार ने अपने दृष्टान्तों के लिये ऐसे सवं-साधारण-गोचर विषयों को लिया है जो सर्व साधारण के लिए बोधगम्य हों। जैसे सद्गुरु की तुलना गौ के दूध से, कुगुरु की आक १. द्वाभ्यां युग्ममिति प्रोक्त त्रिभिः श्लोक विशेषकम्। कलापकं चतुभिः स्यात्तदूर्ध्वं कुलकं स्मृतम् ॥ २. नागरी प्रचारिणी पत्रिका वर्ष ५८, अंक ४, पृ० ४३५
SR No.006235
Book TitleApbhramsa Sahitya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHarivansh Kochad
PublisherBhartiya Sahitya Mandir
Publication Year
Total Pages456
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size33 MB
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