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अपभ्रंश-साहित्य
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तर से प्रतीत होते हैं । "
परमात्म प्रकाश दोहों में रचा गया है। बीच-बीच में कुछ गाथायें भी मिलती हैं ।
१. इस प्रकार के शब्दों की सूची उनके संस्कृत पर्यायवाची शब्दों के साथ नीचे दी जाती है ।
होसह -- भविष्यन्ति (१.२ ) ; गउ - गतः (१.९ ) ; अप्पा -- आत्मा ( १. १. ५१ ) ; लेइ - - गृह जाति (१. १८) हिन्दी लेना; लेति (२. ९१ ) ; लेवि ( २.१५० ) ; छिवइ - - स्पृशति (१.३४ ) ; वड्ढइ खिरइ - वर्धते क्षरति ( १.५४ ) ; बोल्लाह — बुवन्ति (१.५४ ), ( २.१०); देखइ - - पश्यति ( १.६४ ) ; जाइ -- याति (१. ६६ ) ; उप्पज्जइ — उत्पद्यते -- उपजना (१. ६८ ) ; पावहि - प्राप्नोषि (१.७२, २. २०५, २१३ ) ; मेल्लिवि-छंडे विणु -- त्यक्त्वा (१.७४); छंडि - त्यज (२.१२८); बाहिरउ-वाह्यं ( १. ७५, २.१०९ ) ; बूढउ --- वृद्धः (१.८२ ) ; जोइ -- पश्यति (१.८६ ) ; जोअ -- देखना (१.१०९ ) ; मइलए - - मलिने (१.१२० ); अक्खहि -- आख्याहि पंजाबी आख (२.१);
( २.
लहइ - लभते ( १०११७ ) ;
३४ ) ; (२.१७७ )
;
खंडा -- खड्ग ( १ . १२१ ) ;
(२.१);
जाणउं - - जानूं तुट्टइ - त्रुट्यति (२.११ ) ; पेच्छइ - - पश्यति (२.१३ ) ; छह - षट् ( २. १६) ; रयणहं -- रत्नानां ( २. २१); चडेइ -- आरोहति ( २. ४६ ) ; भल्लाई -- भद्राणि (२.५७ ) ( २. ११० ) ; पडतउ - - पतन्तम् ( २. ६८ ) ; सिद्धिहि केरा पंथडा -- सिद्धेः संबन्धी पन्थाः (२.६९ ) ; जाहि--याहि हिन्दी जा (२.७० ) ; लग्गइ -- लगति (२.७८ ) ; बुज्झइ -- बुध्यते हिन्दी बूझना (२.८२ ) ( २. २०४ ) ; पढिज्जइ - पठ्यते ( २. ८४ ) ; चेल्ला-चेल्लीपुथिर्याह-- चेला, चेली, पुस्तकाविक से ( २.८८ ) ; छारेण -- क्षारेण, राख से ( २. ९० ) ; डहंति - - दहति ( २. ९२ ) ; विहाणु - विभातः (२. ९८ ) ; णाव - नौः (२. १०५ ) ; पिट्टियउ --- पिट्यते ( २. ११० ) ; संडस्सय-संदेशक, हिन्दी संडासी ( २. ११४) ; धंधइ -- धंधे में ( २.१२१ ) ; घरुगृह ( २. १२४ ) ; भुल्लउ -- भ्रान्तः (२. १२८ ) ; रुक्खें —— वृक्षेण ( २. १३३ ) ; वप्पेण - पित्रा ( २. १३४ ) ; चरिवि-- चरित्वा चर कर चोप्पfs - ( २.१३६ ) ; लहीसि - - लभसे ( २. १४१ ) ; ( २.१७० ) ; क्षय-चुपडो घणावणउ -- घृणास्पद - घिनौना (२. १५१); बलि किज्जउ-- बलि मस्तकस्योपरि तनभागेनावतारणं क्रियेहमिति, बलि जाऊँ ( २. १६० ) ; झंपियएहि - - आच्छादितैः, ढके हुए ( २. १६९); कोइ - - कश्चित् ( २. १८३ ) ; विलाइ - विलीयते ( २. १८४ ) ; बुडहिमज्जन्ति -- डूबते हैं (२. १८९ ) ; केत्तिउ या कित्तिउ - कियत् ( २. १४१ ) ; जित्तिउ - - यावन्मात्रं ( २. ३८ ) । इत्यादि ।
( २.
१४८ ) ;