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________________ अपभ्रंश मुक्तक काव्य – १ "जें दिट्ठे तुट्टेति लहु कम्मइँ पुव्व कियाइँ । सो पर जाणहि जोइया देहि वसंतु ण काइँ ।” १.२७ ॥ विमल स्वभाव वाले उस परमात्मा को छोड़ कर तीर्थ यात्रा, गुरु सेवा, किसी अन्य देव की चिन्ता करना व्यर्थ है "अण्णु जि तित्यु म जाहि जिय अण्णु जि गुरुअ म सेवि । अण्णु जि देउ म चिति तुहुं अप्पा विमलु मुवि ॥ १.९५॥ वह आत्म तत्व न देवालय में, न शिला में, न लेप्य में और न चित्र में है । वह अक्षय, निरंजन, ज्ञानमय शिव समचित्त में है । अर्थात् समदर्शी योगियों द्वारा जाना जाता है "देउ ण देउले गवि सिलए गवि अखउ णिरंजणु णाणणउ सिउ रागादि से मलिन चित्त में शुद्धात्म स्वरूप के आत्मा के ध्यान से अनन्त सुख की प्राप्ति होती है लिप्पइ णवि चित्ति । चित्ति ॥" संठिउ सम दर्शन नहीं होते (१. ११७) । (१.१२० ) । उसी २६९ यदि क्षण भर भी कोई उस परमात्मतत्व से अनुराग कर ले तो उसके समग्र पाप इसी प्रकार नष्ट हो जाते हैं जिस प्रकार आग की चिनगारी से लकड़ियों का विशाल ढेर "जइ णिविसद्ध वि कुवि करइ परमप्पइ अणुराउ | अग्गि-कणी जिम कट्ठ-गिरी डहइ असेसु वि पाउ ॥' १. ११४ ज्ञानमय आत्मा को छोड़कर दूसरी वस्तु ज्ञानियों के मन में नहीं लगती । जिस ने मरकत को जान लिया उस को काँच से क्या प्रयोजन ? योगीन्द्र ने बताया कि ज्ञानी पाप को भी अच्छा समझते हैं क्यों में दुःख उत्पन्न कर उनमें सद् बुद्धि पैदा करते हैं । अतएव पुण्यों का को भी प्रस्तुत रहना चाहिये कि ये पाप जीवों निराकरण करने "वर जिय पावईँ सुंदरइँ णाणिय ताइँ भणति । जीवहँ दुक्ख जणिवि लहू सिवमइँ जाइँ कुणंति ॥ " २.५६॥ "पुणेण होइ विहवो विहवेण मओ मएण मइ-मोहो । मइ - मोहेण य पावं श पुण्णं अम्ह मा होउ ।” २.६० ॥ मोक्ष मार्ग का उल्लेख करते हुए कवि ने बताया कि चित्त शुद्धि ही मोक्ष का एक मात्र उपाय है— " जहि भावइ तहि जाहि जिय जं भावइ करि तं जि । केम्वs मोक्खु ण अत्थि पर चित्तहं सुद्धि ण जंजि ॥ २.७०॥ सांसारिक विषयों की नश्वरता और असारता का प्रतिपादन करते हुए कवि ने विषय त्यागी की प्रशंसा की है-
SR No.006235
Book TitleApbhramsa Sahitya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHarivansh Kochad
PublisherBhartiya Sahitya Mandir
Publication Year
Total Pages456
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size33 MB
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