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__ अपभ्रंश-साहित्य
मिणाह चरिउ (नेमिनाथ चरित) यह कृति अप्रकाशित है । इसकी एक हस्तलिखित प्रति पाटोदी शास्त्र भण्डार, जयपुर में है । और दूसरी पंचायती मन्दिर देहली में । कृति के रचयिता का नाम लखम देव (लक्ष्मण देव) है। सन्धि की पुष्पिकाओं में कवि ने अपने आपको रयण (रत्नदेव) का पुत्र कहा है। आरम्भ की प्रशस्ति से विदित होता है कि कवि मालवा देश के समृद्ध नगर गोणंद में रहता था । यह नगर उस समय जैन धर्म और विद्या का केन्द्र था। कवि पुर वाड़ वंश में उत्पन्न हुआ था । कवि अति धार्मिक, धन-धान्य-सम्पन्न और रूपवान् था। काव्य-रचना में कवि को साढ़े आठ मास लगे । रचना-काल का कवि ने निर्देश नहीं किया। पंचायती मन्दिर देहली में प्राप्त इस ग्रन्थ की हस्तलिखित प्रति का लेखन काल वि० सं० १५९७ है। किन्तु इसी ग्रंथ की एक हस्तलिखित प्रति वि० सं० १५१० की लिखी उपलब्ध हुई है । अतएव इतना ही निश्चयपूर्वक कहा जा सकता है कि ग्रंथ की रचना इस काल से पूर्व हुई। __ इस ग्रंथ में कवि ने २२ वें तीर्थकर नेमिनाथ का चरित अंकित किया है। ग्रंथ में ४ सन्धियाँ और ८३ कडवक हैं।
कथानक-ग्रंथ का आरम्भ जिन स्तुति और सरस्वती वंदना से होता है। मनुष्य जन्म की दुर्लभता का निर्देश कर कवि सज्जन-दुर्जन स्मरण और अपनी अल्पज्ञता का प्रकाशन करता है । मगध देश और राजगृह के वर्णन के अनन्तर श्रेणिक
१. पं० परमानन्द जैन-जयपुर में एक महीना, अनेकान्त वर्ष ६, किरण १०-११,
पृ० ३७४। २. इयणेमिणाह चरिए अबुह कय रयण सुअ लखम एवेण विरइए, भव्वयण
जणमणाणंदो णेमि कुमार संभवो णाम पठमो संधी परिछेऊ समत्तो॥संधि ॥१॥ ३. प्रो० हीरालाल जैन--नागपुर युनिवर्सिटी जर्नल, दिसं० १९४२, पृ ९२. ४. अहवा जिण गुण कित्तणु करेमि, णिय सत्तियता दुज्जण डरेमि।
दुज्जण जलणहो एक्कुवि सहाउ, पर दिहिविउ पावइ पवर छाउ । दुज्जीहुवि पर छिद्दाणु वेखि, जिह कोसिउ ण सहइ रवि पयाउ । तिह खलु ण डहेइ गुणागुराउ, जा णिव्वउ इय दुज्जण सहाउ । गुणु मेलिवि दोसु गहेइ पाउ, मेल्लि घउ परिहरि दुट्ठ सोउ । जलणु व जलेइ सइ भूइ होइ, जइ को कुविससि विरुयउ भणेइ। तां इयर लोइ किण अमिउ देइं, जइ दोसई दुज्जणु करइ हासु । ता सुयणु करेसई गुण पयासु,
कि वुह रंजमि जाणमि ण अत्थु । ग समास ण छंदु ण बंधु भेउ, णउ होणाहिउ मत्ता विवेउ । गउ सक्कउ पायउ देस भासि, गउ सदु वणु जाणमि समासु। १.४