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________________ अपभ्रंश-विषयक निर्देश जाना बन्द हो गया था। यह सर्वसाधारण की भाषा मानी जाने लगी थी। इस समय तक यह सुराष्ट्र से लेकर मगध तक फैल गई थी। स्थान-भेद से इसमें भिन्नता प्रा गई थी किन्तु काव्य में आभीरादि की अपभ्रंश का ही प्रयोग होता था। (ङ) ग्यारहवीं शताब्दी में प्रालंकारिकों, वैयाकरणों और साहित्यिकों ने स्वीकार किया कि अपभ्रंश एक ही भाषा नहीं अपितु स्थान-भेद से अनेक प्रकार की है। इस समय तक अपभ्रश व्यापक रूप में प्रयुक्त होने लग गई थी। इसी का एक रूप मगध में भी प्रचलित था। सिद्धों की रचनाओं से इसकी पुष्टि होती है।
SR No.006235
Book TitleApbhramsa Sahitya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHarivansh Kochad
PublisherBhartiya Sahitya Mandir
Publication Year
Total Pages456
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size33 MB
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