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अपभ्रंश-खंडकाव्य (धार्मिक) इसमें पण्डित लाखू या लक्खण ने ग्यारह संधियों में जिनदत्त के पारित का वर्णन किया है । कवि के पिता का नाम साहुल और माता का नाम जयताया। कवि ने विल्करामिपुर में इस ग्रंथ की रचना की । कवि पहिले त्रिभुवन गिरि में रहता था। मलेछाधिन द्वारा बलपूर्वक त्रिभुवन गिरि के आधीन किये जाने पर कक्विहाँ से जापार विल्लरामिपुर रहने लगा।' पं० परमानन्द के विचार में विलरामिपुर एटा जिले के अन्तर्मत वर्तमान विलरामपुर ही है । कवि ने श्रीधर के आश्रय में रहते हए उसी के अनुरीष से: ग्रंथ की रचना की। प्रत्येक संधि की पुष्पिका में श्रीवर का नाम मिलता है और कुछ संचियों के आरम्भ में कवि ने श्रीधर के मंगल की कामना की है। प्रथा एवना का सनम वि० सं० १२७५ है।
"बारह सय सत्तरयं पंचोत्तरयं, विक्कम कालिकास। पढम पक्खि रवि वारइ च्छट्टि सहाडा समोसे सम्मतिड ।।"
(जन्तिप्रशस्ति) कथानक-कवि जिन वन्दना, सरस्वती वन्दना के अमन्तर जंबुद्वीप; भरत क्षेत्र और मगध देश का अलंकृत भाषा में वर्णन करता है। मगध राजकान्तर्गत वसन्तपुर-मगर के राजा शशि-शेखर और उसकी रानी मयना सुन्दरी के वर्णन के अमलर कवि उसनगर के श्रेष्ठी जीवदेव और उसकी स्त्री जीवंजसा के सौंदर्य का वर्णन करता है। जीवंजसा जिन कृपा से एक सुन्दर पुत्र को जन्म देती है, जिस का नाम जिनदत्त रखा जाता है। क्रमश: चालक युवावस्था में पदार्पण करता है अपने सौंदर्य से नगर की युवतियों के मन को मुग्धा करता है। अंगदेशस्थित चंषा नगरी के सेठ की सुन्दरी कन्याविमलमती से उसका विवाह होता है । इसी प्रसंग में कवि ने रात्रि, चंद्रोदय आदि के सुन्दर वर्णन प्रस्तुत किये हैं।
१. साहुलहु सुपिय पिययम मणुज्ज, णा जयता कय णिलय कज्ज । ताह जि गंदणु लक्खणु सलक्खु, लक्खण लक्खिउ सयवल दलक्खु । विलसिय विलास रस गलिय गव्व, तें तिहुमण गिरि पिवसति सध्य । सो तिहुवण गिरि भग्गउ जवेण, पित्तउ वलण मिच्छाहिवेण । लक्खणु सव्वा उस माणुसाउ, विच्छोयउ विहिणा जणियराउ। सो इत्थु तत्थ हिंडंतु पत्त, पुरे विल्कमि लक्मणु सुपत।
१.२ २. पं० परमानन्द जैन, कवि वर लक्ष्मण और जिन बत्त चरित, __ अनेकान्त वर्ष ८, किरण १०-११, पृ०४०१ । ३. इय जिणयत्त चरित्ते धम्मस्थ: काम मुक्त बण्णाभाव सुपविते,
सगुण सिरि साहुल सुय लक्षण-विरइए भव्यसिरि सिरिहरस्स णामंकिए जिणयत्त कुमारप्पत्ति । विरह वण्णणो णाम पढमो : परिच्छेउ सम्मतो।
(सन्धि १)