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अपभ्रंश-साहित्य
डम डमिय उमर वसयागहिर सद्दाई, दो दो तिकय दिविलु उठ्ठियणिणदाई। भं भंत उच्च सर भेरी गहीराइं, घण घा यरुण रुणिय जय घंट साराई। कडरडिय करहिं भुवणेक्क पूराइं, धुम धुमिय मद्दलहिं वज्जियई तूराइं॥ ६.१०
काव्य में कवि ने खंडय, जंभेट्टिया, दुवई, उवखंडय, आरणाल, गलिलय, दोहय, वस्तु, मंजरी आदि छन्दों का सन्धियों के आरम्भ में प्रयोग किया है। इनके अतिरिक्त पद्धडिया, पादाकुलक, समानिका, मदनावतार, भुजंग प्रयात,सग्गिणी, कामिनी, विज्जुमाला, सोमराजी, सरासणी, णिसेणी, वसंत चच्चर, द्रुतमध्या, मंदरावली, मदनशेखर आदि छन्दों का भी प्रयोग किया गया है।
कवि ने अठारहवीं सन्धि में कडवकों के आरम्भ में दोहयं का प्रयोग किया है । तुक प्रेम के कारण दोहे के प्रथम और तृतीय चरण में भी तुक मिलाई गई है--
कोइ णु कासु वि दुह सुहई, करइ णको वि हरेइ । अप्पाणेण विढत्तु वढ, सयलु वि जीउ लहेइ ॥ १८.९
सील रयणु वय किति घर, सव्व गुणेहि सउण्णु । सो घणवंतउ होइ णर, सो तिहुयण कय पुण्णु ॥
१८.११
पज्जुण्ण चरिउ (प्रद्युम्न चरित) .. सिंह विरचित १५ सन्धियों का अप्रकाशित काव्य है। तीन हस्तलिखित प्रतियां आमेर शास्त्र भण्डार में विद्यमान हैं (प्र० सं० पृष्ठ १३२-१३८) ।
कवि के पिता का नाम रल्हण और माता का जिनमती था। ग्रन्थ को कवि ने अपनी माता के अनुरोध से बनाया । ग्रन्थ की सन्धियों के आरम्भ में संस्कृत आषा में पद्य भी दिये हुए हैं जिनसे प्रतीत होता है कि कवि संस्कृत का भी ज्ञाता था।' कवि ने अपने
१. यत्काव्यं चतुरानना हु नितरं सत्पद्म मातन्वतः
स्वरं भ्राम्यति भूमि भागमखिलं कुर्वन्वलक्ष क्षणात् । . तेनेदं प्रकृतं चरित्र मसमं सिद्धेन नाम्ना परं . प्रद्युम्नस्य सुतस्य कर्ण सुखदं श्री पूर्व देव द्विषः॥ २.१ छंदालंकृत लक्षणं न पठितं नाधावि तांगमः ज्योति हंत न कर्ण गोचर चरं साहित्य नामापि च । सिंहः सत्कविरग्रणी समभव त्प्राप्य प्रसाद वरं वाग्देव्या सुकवित्वया जयतु सामान्यो मनसं प्रिया ॥ १४.१