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________________ अपभ्रंश-खंडकाव्य (धार्मिक) २१९ कवि के युद्ध वर्णन सजीव हैं । युद्ध की अनेक क्रियाओं को अभिव्यक्त करने के लिए तदनुकूल शब्दों की योजना की गई है। झर-झर रुधिर का बहना, चर-चर चर्म का फटना, कड़-कड़ हड्डियों का मुड़ना आदि वाक्य युद्ध के दृश्य का सजीव चित्र उपस्थित करते हैं। देखिये-- असि णिहसण उडिय सिहि जालई, जोह मुक्क जालिय सर जालइं। पहरि पहरि आमिल्लिय सद्दई, अरि वर घड थक्कय सम्मद्दई । झरझरंत पवहिय बहुरत्तई, णं कुसंभ रय राएं रत्तई। चरयरंत फाडिय चल चम्मई, कसमसंत चरिय तणु वम्मइं। कडयांत मोडिय घण हड्डई, मंस खंड पोसिय भे रुंडई। वडदडत धाविय वहुरुंडई, हुंकरंत घरणि वडिय मुंडई। फाडिय चमर छत्त धयदंडई, खंड खंड कय गय वर सोंडई। सु० च० ६. ११ निम्नलिखित जय और अर्ककीति के युद्ध के वर्णन में कवि ने भुजंग प्रयात छन्द द्वारा योद्धाओं की गति का भी चित्रण किया है । देखिये-- "भडो को वि खग्गेण खग्गं खलंतो, रणे सम्मुहे सम्मुहो आहणंतो । भडो को वि वाणेण वाणो दलंतो, समद्धाइउ बुद्धरो णं कयंतो । भडो को वि कोतेण कोंतं सरंतो। करे गीढ चक्को अरी संपहुंत्तो। मडो को वि खंडेहि खंडी कयंगो, भडन्तं ण मुक्को सगावो अभंगो। भडो को वि संगाम भूमी घुलंतो, विवण्णोहु गिद्धावली णीअ अंतो। भडो को वि घाएण णिन्वट्ट सोसो, असो वावरेई अरी साण भीसो। भडो को वि रत्तप्पवाहे तरंतो, फुरंतप्पएणं तडि सिंग्यपत्तो। भडो को वि हत्थी विसाणेहि भिण्णो, भडो को वि कंठद्ध छिण्णो णिसण्णो । घत्ता--तहि अवसरि णियसेण्णु पेच्छिवि सर-जज्जरियउ । धायिउ भुय तोलंतु जउ वहु मच्छर भरियउ ॥ कवि ने भाषा में अनुरणात्मक शब्दों का प्रयोग भी किया है
SR No.006235
Book TitleApbhramsa Sahitya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHarivansh Kochad
PublisherBhartiya Sahitya Mandir
Publication Year
Total Pages456
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size33 MB
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