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________________ अपभ्रंश-खंडकाव्य (धार्मिक) २१७ भी ज्ञात कवि हैं उनमें सब से उत्तरकालीन कवि पुष्पदन्त हैं। अत: देवसेन भी पुष्पवन्त के बाद और १३१५ ई० से पूर्व ही किसी समय में उत्पन्न हुए माने जा सकते हैं। काव्य में प्रत्येक सन्धि के अन्तिम घत्ता में कवि के नाम का निर्देश है। कवि निबड़ि देव के प्रशिष्य और विमलसेन गणधर के शिष्य थे। सुलोचना कथा जैन कवियों का प्रिय विषय रही है । आचार्य जिनसेन ने अपने हरिवंश पुराण में महासेन की सुलोचना कथा की प्रशंसा की है।' ___ कुवलयमाला के कर्ता उद्योतन सूरी ने भी सुलोचना कथा का निर्देश किया है। पुष्पदन्त ने अपने महापुराण की २८ वी संधि में इसी कथा का विस्तार से सुन्दर वर्णन किया है। धवल कवि ने अपने हरिवंश पुराण में रविषेण के पद्म चरित्र के साथ महासेन की सुलोचना कथा का उल्लेख किया है। कवि ने अपने इस काव्य में कुन्दकुन्द के सुलोचना चरित्र का उल्लेख किया है और कहा है कि कुंद कुंद के गाथाबद्ध सुलोचना चरित्र का मैंने पद्धडिया आदि छंदों में अनुवाद किया है। न महासेन की सुलोचना कथा और न कुंदकुंद का सुलोचना चरित आजकल उपलब्ध है। किन्तु कवि अपने पूर्ववर्ती कवियों की विशेषतः पुष्पदन्त की रचना से प्रभावित हुआ होगा, इसका अनुमान कवि की निम्नलिखित गाथा से लगाया जा सकता है : "चउमुह सयंभु पमुहेहिं रक्खिय दुहिय जा पुफ्फयंतेण । सुरसइ सुरहीए पयं पियं सिरि देवसेणेण ॥ १०.१ अर्थात् चतुर्मुख, स्वयंभू आदि कवियों द्वारा रक्षित और पुष्पदन्त द्वारा दोही गई सरस्वती रूपी गौ के दुग्ध का देवसेन ने पान किया। इस काव्य में कवि ने सुलोचना के चरित्र का वर्णन किया है। चक्रवर्ती भरत के प्रधान सेनापति, जयकुमार की धर्मपत्नी का नाम सुलोचना था। वह राजा अकंपन और सुप्रभा की पुत्री थी। सुलोचना अनुपम सुन्दरी थी। इसके स्वयंवर में अनेक देशों के बड़े-बड़े राजा आये। सुलोचना को देख कर वे मुग्ध हो गये, १. नाथू राम प्रेमी, जनसाहित्य और इतिहास, पृ० ५३८. महासेनस्य मधुरा शीलालंकार धारिणी। कथा न वर्णिता केन वनितेव सुलोचना ॥ २. वही पृ० ५३८ सण्णिहिय जिण वरिंदा धम्म कहा बंध दिक्खिय परिंदा । कहिया जेण सुकहिया सुलोयणा समवसरणं व ॥ ३. मुणि महसेणु सुलोयण जेणवि, पउम चरिउ मुणि रविसेणणवि । हरि० पु. १.३ ४. जं गाहाबंधे आसिउत्तु, सिरि कुंद कुंद गणिणा णिरुत्तु । तं एमहि पद्धडियहिं करेमि, वरि किंपि ण गूढउ अत्थु देमि ॥ १.६
SR No.006235
Book TitleApbhramsa Sahitya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHarivansh Kochad
PublisherBhartiya Sahitya Mandir
Publication Year
Total Pages456
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size33 MB
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