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अपभ्रंश-खंडकाव्य (धार्मिक)
२१५ दशमी तिथि रविवार को समाप्त की थी ।' ___ यह कृति कवि ने माथुर वंशी नारायण साहु की पत्नी रुप्पिणी के लिए लिखी थी। सन्धि की पुष्पिकाओं में इसके नाम का उल्लेख भी किया गया है । प्रत्येक सन्धि के आरम्भ में कवि ने इन्द्रवज्रा, शार्दूल विक्रीडित आदि संस्कृत छन्दों में रुक्मिणी की मंगल कामना भी की है। ___ ग्रंथ में श्रुत पंचमी व्रत के फल और माहात्म्य को प्रदर्शित करने के लिए भविष्यदत्त के चरित्र का वर्णन छह सन्धियों और १४३ कड़वकों में किया गया है। कवि ग्रंथ के आरम्भ में ही मंगलाचरण करता हुआ कहता है
ससि पह जिण चरणइं, सिवसुह करणइं, पणविवि णिम्मल गुणभरिउ ।
आहासमि पविमल, सुअ पंचमि फलु, भविसयत्त कुमरहो चरिउ ॥ १.१ कवि की कविता का उदाहरण निम्नलिखित हस्तिनापुर वर्णन में देखा जा सकता है
हिं हथिणायउर वसइ जयरु, पवरावण दरिसिय रयण पवरु। जहि सहलइ सालु गयणग्गलग्गु, हिमगिरि व तुंग विछिण्ण मग्गु । परिहा सलिलंतरे ठिय मराल, णाणा मणि णिम्मिय तोरणालु । सुर हर धय चय चंविय णहग्गु, पर चक्क मुक्क पहरण अभग्गु । कवसीसय पंतिय सोह माणु, मणिगण जुइ अमुणिय सेयभाणु। मंगल रव बहिरिय दस दिसासु, बुहयण घणट्ट माण वणि वासु। जहिं मुणिवरेहिं पयडिय धम्म, परिहरियइं भव्वयहिं छम्मु । जहिं दिज्जइ सावय जहिं दाणु, विरएवि णु मुणि वर पहिं माणु। जहिं को वि ण कासु वि लेइ दोसु, ण पियइ धण धण्ण कएण कोसु ।
१. "णरणाह विक्कमाइच्च काले, पवहंतए सुहयारए विसाले।
बारहसय वरिसहिं परिगएहि, दुगुणिय पणरह वच्छर जुएहि । फग्गुण मासम्मि वलक्ख पक्खे, दसमिहि दिणे तिमिरुक्कर विविक्खे । रविवारि समाणिउं एउ सत्थु, .........................।
२. इय सिरि भविसयत्त चरिए विवह सिरि सुकइ सिरिसिहर विरइए,
साहु णारायण भज्जा रुप्पिणि गामंकिए.......इत्यादि । ३. या देव धर्म गुरु पाद पयोज भक्ता, सर्वज्ञ देव सुख दायिमतानुरक्ता । संसार कारि कुकथा कयने विरक्ता सा रुक्मिनी बुध जनै न कथं प्रशस्या ॥
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