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________________ अपभ्रंश-खंडकाव्य (धार्मिक) में एक आध स्थान पर ही बाण की शैली के दर्शन होते हैं। अन्यथा उस प्रकार के वर्णनों का अभाव ही है। विझाउइ व्व गय-मय-वियार पाउसु-सिरि व्व संतावहार । वाडव-सिहि व्व कय-जलहि-सोस दिणयर-पह व्व निद्दलिय दोस। ४. ४. ४१-४२ (गय-मय-वियार) मद झरते गजों वाली विन्ध्याटवी के समान वह विमलशीला गणिनी (गय-मय-विकार) मद विकार रहित थी। जलधि-समुद्र का शोषण करने वाली वाडवाग्नि के समान वह भी जलधि--जडधी-को शोषण करने वाली थी। सामाजिक अवस्था-काव्य के अध्ययन से कुछ तत्कालीन अवस्थाओं पर प्रकाश पड़ता है । समाज में बहु विवाह की प्रथा थी। समुद्रदत्त ने पद्मश्री का परित्याग कर कांतिमती से विवाह किया। विवाह खूब धूमधाम से होता था । समुद्र दत्त विवाह के लिए हाथी पर सवार हो कर आया (२. २०.) । विवाह के समय वधू भी श्वेत वस्त्र धारण करती थी (२. १८. २०८) । वर के माता पिता दोनों उसके साथ विवाहार्थ गये । वर की माता और वधू की माता दोनों विवाह की खुशी में परस्पर नाची (२. २२. २५२.)। स्त्रियाँ मुख को पत्रलेखा से सजाती थीं (२. ४. ४४) । कन्या का जन्म माता पिता के लिए चिन्ता का कारण होता था। पद्मश्री का पिता शंख समझता था कि जिस घर में लड़की नहीं वह अत्यधिक कृतार्थ है (४. २.१८) । ____ ज्योतिषियों की बातों में लोग विश्वास करते थे (२. १६. १८४)। शकुनों में भी विश्वास किया जाता था (३. ४. ५३) । अलौकिक घटनाओं को भी असंभव नहीं समझा जाता था (४. ८)। सन्तों, महात्माओं पर लोगों की श्रद्धा थी और घर आने पर उनका भली भाँति सत्कार किया जाता था (४. ७) । ., छंद-ग्रंथ में मुख्य रूप से पद्धडिका छन्द का ही प्रयोग हुआ है । एक ही कडवक में दो छन्दों का प्रयोग भी कुछ स्थलों पर मिलता है । (जैसे १.२, १.९, २.२०, ३.७, ३.१०) पास चरिउ--पार्श्व पुराण यह ग्रंथ अप्रकाशित है। आमेर शास्त्र भंडार में इस ग्रंथ की दो हस्तलिखित प्रतियाँ वर्तमान हैं। इसमें पद्मकीत्ति ने तेईसवें तीर्थकर पार्श्वनाथ का चरित्र वर्णित किया है । इसमें १८ सन्धियाँ हैं । सन्धियों में कडवकों की संख्या निश्चित नहीं। चौथी और पांचवीं सन्धियों में बारह-बारह कडवक हैं किन्तु चौदहवीं सन्धि में तीस कडवक मिलते हैं। वि० संवत् १६११ में लिखित प्रति में लेखक ने ग्रन्थ संख्या अर्थात् पद्य संख्या ३३२३ बताई है।
SR No.006235
Book TitleApbhramsa Sahitya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHarivansh Kochad
PublisherBhartiya Sahitya Mandir
Publication Year
Total Pages456
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size33 MB
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