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________________ अपभ्रंश-खंडकाव्य (धार्मिक) लगी। पति-प्रवास में अपनी म्लान और खिन्न अवस्था का वर्णन करती हुई करुण-क्रन्दन करने लगी । (३)। रोती-रोती और करुण-क्रन्दन करती पद्मश्री को छोड़ उद्विग्नमन समुद्रदत्त अपने नगर में लौट पड़ा । कोशल पुरी में नंद नामक एक वणिक के घर में उसकी स्त्री पुष्पवती से कान्तिमती और कीतिमती नामक दो लड़कियां हुई थी जो पूर्व जन्म में यशोमती और यशोदा थीं । सुन्दरी युवती कांतिमती ने समुद्रदत्त और कीतिमत्ती ने उसके भाई उदधिदत्त के साथ विवाह किया। ये उनकी पूर्व जन्म की पत्नियां थीं। यह समाचार पाकर पद्मश्री का पिता शंख कन्या जन्म से खिन्न हुआ। पद्मश्री भी व्याकुल हुई। इसी बीच विमलशीला नामक एक गणिनी आई। उसके आश्वासन, उद्बोधन और धर्मोपदेश से पद्मश्री व्रत, स्वाध्याय, तपश्चर्या में रत हो गई। इसी बीच वे दोनों साकेत नगरी में कांतिमती और कीतिमती के घर में पहुँचे। पूर्वजन्म-विपाक के कारण पद्मश्री पर चोरी का कलंक लगा । व्रत, तपश्चर्या आदि में दृढ़ता से निरत पदमश्री ने केवल ज्ञान प्राप्त किया। ज्ञानाग्नि से कर्मों का दाह कर धर्मोपदेश करती हई पद्मश्री ने अन्त में मोक्षप्राप्त किया। धार्मिक आवरण के कारण इस प्रेम-कथा में कहीं-कहीं अलौकिक घटनाओं का समावेश हो गया है। इस आवरण को हटा देने से प्रेम कथा स्वाभाविक रूप में हमारे सामने आ जाती है । धनश्री और समुद्रदत्त का एक दूसरे को देखकर परस्पर अनुरक्त होना, एक दूसरे को न पाकर व्याकुल होना, इस पूर्वानुराग का विवाह में परिणत होना, विवाहानन्तर वियोग के कारण विह्वलता आदि सब स्वाभाविक वर्णन कवि ने उपस्थित किये हैं। प्रबन्ध कल्पना-पद्मश्री न तो ऐतिहासिक पात्र है और न पौराणिक । कवि ने उसके पूर्व जन्म की कथा से, मानव द्वारा भिन्न-भिन्न जन्मों में किये कर्मों के फलभोग को लक्ष्य कर, उसके उच्च चरित का वर्णन किया है । एवं जीवन में नैतिक और पुण्यकार्य करते हुए मानव द्वारा मोक्ष प्राप्ति की ओर संकेत किया है। संबन्ध निर्वाह-कथा प्रवाह में एक प्रसंग दूसरे से संबद्ध है । पद्मश्री पूर्व जन्म में किये गये कर्मों का फल भोगती हुई अन्त में निर्वाण पद प्राप्त करती है, सारे प्रसंग इसी कार्य की ओर अग्रसर होते हुए दिखाई देते हैं । कथा की गति में कहीं अनावश्यक विराम नहीं । कवि ने रसात्मकता के लिए घटनाचक्र में मानव की रागात्मिका प्रकृति को उद्बुद्ध करने वाले एवं हृदय को भावमग्न करने वाले स्थलों को पहिचान कर उनका सुन्दर वर्णन किया है । कवि की इस सहृदयता के कारण उसका वस्तुवर्णन और पात्रों द्वारा भावाभिव्यंजन दोनों सरल और सुन्दर हो सके हैं। __वस्तु वर्णन--कवि ने अलंकृत भाषा में अनेक भौगोलिक प्रदेशों का वर्णन किया १. उदाहरण के लिए चित्र मयूर कांतिमती के हार को निगल जाता है और फिर माया द्वारा आकर उसे वापस कर देता है ।
SR No.006235
Book TitleApbhramsa Sahitya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHarivansh Kochad
PublisherBhartiya Sahitya Mandir
Publication Year
Total Pages456
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size33 MB
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