SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 215
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ अपभ्रंश 'डकाव्य (धार्मिक) में मिलता है। समाज में सदाचार -- सदाचार की दृष्टि से समाज उन्नत न था । सत्संगति सम्बन्धी एक कथा का वर्णन करते हुए कवि बतलाता है कि एक सज्जन व्यापारी जिसे राजा ने उसकी साबुता एवं उदारता से मन्त्री बना दिया था एक दिन राजकुमार के सब आभूषण हर कर एक वेश्या के घर में गया (२. १७. २ ) । करकंड के पूर्व जन्म का परिचय देता हुआ कवि बताता है पूर्व जन्म में उसकी माता नागदत्ता का चरित्र अच्छा न था । वह अपने दत्तक पुत्र साथ प्रेम में फंस गई थी ( १०. ६.८ - १० ) । संभव है कि इन घटनाओं के उल्लेख से कवि समाज में पतित और नीच व्यक्ति के हृदय में भी उद्धार की भावना का संचार करना चाहता हो । पउम सिरी चरिउ ' पद्म श्रीं चरित पउम सिरी चरिउ, दिव्य दृष्टि वाहिल का लिखा हुआ चार संधियों का काव्य है। दिव्य दृष्टि, धाहिल का उपनाम था । काव्य का आरम्भ 'धाहिल दिग्व दिठि कवि जंपइ' से होता है । प्रत्येक सन्धि के अन्त में भी कवि ने इस नाम का प्रयोग किया है । कवि ने अपनी कृति के अन्त ( ४. १६) में अपने विषय में जो सूचना दी है उससे विदित होता है कि कवि शिशुपालवध माघ के बंश में उत्पन्न हुआ था । काव्यकर्त्ता धत्ता- ससि दाल-कव्व क आसु माहु ? जसु विमल किर्त्ता जगु भमई साहु । तसु निम्मल वंसि समुब्भवेण पउमसिरि चरिउ किउ धाहिलेण । महाहि । --कवि-पासहँ नंदणु दोस विमद्दणु सूराईह जिण चलणह भत्तउ तायह पोत्तउ दिव्व दिट्ठि निम्मल मइहि ॥ प. सि. च. ४.१६ १९७ पउम सिरि चरिउ की हस्त लिखित प्रति वि. सं. १९९१ में लिखी हुई प्राप्त हुई है । ( प्रास्ताविक वक्तव्य पृ० २ ) । कवि माघ का समय विक्रम की आठवीं शताब्दी का पूर्वार्द्ध माना गया है । अतः धाहिल विक्रम की आठवीं शताब्दी के बाद और बारहवीं शताब्दी के पूर्व ही किसी समय हुए होंगे । पउम सिरि चरिउ (पद्म श्री चरित) में कवि ने चार संधियों में पद्म श्री के पूर्व जन्म की कथा का वर्णन किया है । यह काव्य धार्मिक आवरण से आवृत एक सुन्दर प्रेम कथा है। काव्य ऐहलौकिक पात्रों को लेकर उनके जीवन की घटनाओं का १. श्री मधु सुदन मोदी तथा श्री हरिवल्लभ भायाणी द्वारा संपादित, भारतीय विद्या भवन, बंबई, वि० सं० २००५ ।
SR No.006235
Book TitleApbhramsa Sahitya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHarivansh Kochad
PublisherBhartiya Sahitya Mandir
Publication Year
Total Pages456
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size33 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy