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________________ १९५ १९५ अपभ्रंश-खंडकाव्य (धामिक) बहुत प्रहारों से मानो शूर सो गया हो। यमक घणु ण चलइ गेहहो एक्कु पाउ । एक्कलउ भंजइ धम्मु पाउ। प्रथम 'पाउ' पाद के अर्थ में और दूसरा ‘पाउ' पाप के अर्थ में प्रयुक्त हुआ है। अर्थालंकारों में उपमा, उत्प्रेक्षादि अलंकारों का अधिक प्रयोग हुआ है। उपमा के अनेक उदाहरण पूर्व वर्णनों में आ चुके हैं। अन्य अलंकारों के उदाहरण नीचे दिये माते हैंउत्प्रेक्षा जहिं सारणि सलिल सरोय पंति । अइरेहइ मेइणि गं हसति । . १.३.१० जहाँ (अंग देश में) मार्ग मार्ग में सरोवरों में कमल खिले हुए हैं मानो हँसती हुई मेदिनी अतिशोभित हो रही हो। सा सोहइ सियजल कुडिलवंति। णंसेय भुवंगहो महिल जंति । ___३. १२.६ ___ गंगा नदी श्वेत जल से भरी चक्कर खाती हुई ऐसी शोभित थो मानो शेषनाग की स्त्री जा रही हो। एत्यत्थि अवंती गाम बेसु गं तुट्टिवि पडियउ स सग्गलेसु। परिसंख्या घणु देवएं पसरइ जासु कर णउ पाणि हेव्वई धरइ सरु। १. ५. ५ जिसका हाथ धणु-धन-देने के लिए फैलता है। जिसका धणु-धनुष-प्राणिवध के लिए बाण नहीं धारण करता। ___ अलंकारों का प्रयोग अधिक नहीं मिलता। कवि ने अपने अलंकार-ज्ञान-प्रदर्शन के लिए व्यर्थ अलंकारों का प्रयोग कर वर्णनीय विषय को अलंकारों के भार से लादने का प्रयत्न नहीं किया। छन्द-ग्रन्थ में कवि ने पज्झटिका छन्द का ही अधिकता से प्रयोग किया है । बीच बीच में कुछ पंक्तियाँ या कोई कड़वक, अलिल्लह या पादाकुलक छंद में भी प्रयुक्त हुआ है । भिन्न-भिन्न संधियों में छन्द परिवर्तन के लिए कवि ने निम्नलिखित छन्दों का भी प्रयोग किया है समानिका, तूण क, स्रग्विणी, दीपक, सोमराजी, चित्रपदा, प्रमाणिका। कवि ने अधिकतर मात्रिक छन्दों का ही प्रयोग किया है। एकरूपता को दूर करने के लिए बीच बीच में उपरिलिखित वर्णवृत्तों का प्रयोग किया है। ___सामाजिक अवस्था--काव्य के अध्ययन से तत्कालीन समाज का जो रूप दिखाई देता है वह संक्षेप में इस प्रकार का है।
SR No.006235
Book TitleApbhramsa Sahitya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHarivansh Kochad
PublisherBhartiya Sahitya Mandir
Publication Year
Total Pages456
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size33 MB
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