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________________ होते हैं । शैली के उत्कर्ष के लिए प्रतिपाद्य विषय को आकर्षक बनाना आवश्यक होता है । एतदर्थ लेखक बहुधा छोटे-छोटे हृदयस्पर्शी वाक्यों और सुभाषितों का प्रयोग करता है । इस काव्य में भी अनेक स्थलों पर इस प्रकार के वाक्य मिलते हैं । उदाहरणार्थ---- अर्थात् लोभ से पराभूत सकल जग क्या आश्चर्य जनक कार्य नहीं कवि में, थोड़े से शब्दों द्वारा सजीव सुन्दर चित्र खींचने की जाती है अपभ्रंश - खंडकाव्य (धार्मिक) गुरुआण संगु जो जण वहेइ हिय इच्छिय संपइ सो लहेइ । २. १८. ७ अर्थात् जो गुरुजनों के साथ चलता है वह अभीष्ट संपत्ति प्राप्त करता है । विणु केर लब्भइ णाहि मित्त एह मद्दणि भुजहुं हत्थ मेत्त । ३. ११. १ लोहेण विडंबिउ सयलु जणु भणु कि किर चोज्जहं णउ करइ । २. ९.१० करता ? क्षमता भी पाई धरणि । घसा - मुह कमलु करंती कर कमले अंगुलिएं लिहंती कोमल वयण पउत्तिर्याह सा परिपुच्छिय मई सयलु ॥ १. ६. ९. ८-१० काव्य में अनेक शब्द-रूप इस प्रकार के प्रयुक्त हुए हैं जो हिन्दी के शब्दों से पर्याप्त समता रखते हैं ।" उदाहरण के लिए कुछ शब्द-रूप नीचे दिये जाते हैं: हुयउ ( १.४.१० ) ( १.६.५) डाल चडेवि ( १.१०.९.) क्होत अग्गइ पुक्कार लेवि जाहि वत्त सयाणु गुड सक्कर लड्डु चुक्कइ कहाणी ( १.१४.३) ( १.१४.४) (२.१.९) (२.१.१० ) (२.१.१३) (२.५.८) (२.७.१) (२.८.५ ) (२.१६.१) १९३ हुआ -शाखा, डाल. -चढ़ कर - पेड़ के नीचे - आगे -पुकार — लेकर जाना - वार्त्ता, बात -- सयाना, सज्ञान -गुड़ शक्कर लड्डू --चूकना — कहानी
SR No.006235
Book TitleApbhramsa Sahitya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHarivansh Kochad
PublisherBhartiya Sahitya Mandir
Publication Year
Total Pages456
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size33 MB
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